दिनाँक:08.4.2022
समय : रात 11 बजे
प्रिय डायरी जी,
हमारा तो सारा ध्यान रूस और यूक्रेन पर लगा रहा, तब तक लेखकों ने नवरस का नौलखा बाँटना शुरू कर दिया। युद्ध की विभीषिका से हमारा ध्यान भंग हुआ जब भयंकर रस का आस्वादन कर लेखकों की रचनाएं भयानकता के शिखर पर पहुँच चुकी थीं।
इस सप्ताह के विषय देखे तब जाकर माजरा समझ आया कि भैया! श्रृंगार रस में आकंठ डूबी रचनाएँ भयंकरता के शिखर को पा चुकी है। आर टी सिंह जी ने तो भयानक रस में भावुक कर दिया। आशु कपूर जी ने तो अच्छी खासी क्लास ले डाली। उन्हीं की क्लास से गेट आउट होकर भागे चले आ रहें है।
लेकिन एक बात बताएं! हमे तो माजरा कुछ और ही लग रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे बंटी भैया पिछले साल शादी करके जो कमसिन सी श्रृंगार रस की मिश्री की डली ब्याह कर लाये थे, उसने 4 महीने इनको हास्य रस की रचनाएं सुना-सुनाकर पेट दुखा दिया। फिर धीरे से रानी लक्ष्मीबाई बन कर वीर रस का चटपटा तड़का इस तरह लगाया कि छटी का दूध याद आ गया। लेकिन उनकी माताजी ठहरी करुणा की मूर्ति! उन्होंने दखल देती कड़वाहट को करुणा रस से मीठा कर दिया।
लेकिन आज के भयानक रस ने हमें बंटी भैया के गृह युद्ध से वापिस लाकर फिर से वर्ल्ड वॉर की संभावनाओं के दुःस्वप्न में लाकर खड़ा कर दिया है।
कल का रस निश्चित रूप से रौद्र या विभत्स होगा। तो कल आशु जी की क्लास में मिलते हैं, डांट खाने के लिए। क्योंकि साहित्य के रसों का जो हमने अचार डाला है टीचर जी 'शून्य' देने वाली हैं। (लिखा तो कुछ और था पर नवरात्रि की वजह से शून्य कर दिया)
गीता भदौरिय