दिनाँक: 04.04.2022
समय : रात 10:30 बजे
प्रिय डायरीजी,
आज बचत पर बात करते है। बचत का संधी विग्रह कीजिये तो उसी से पता चल जाएगा कि अपने को बचाने के लिए किए गए प्रयास ही बचत कहलाते है। फिर वो प्रयास चाहे वित्तीय क्षेत्र में हो या रिश्तों में।
पैसों की बचत तो हमारे देश में बच्चे के जन्म के समय ही शुरू हो जाती है। पहला खिलौना मिलने से पहले उसे गुल्लक मिल जाती है। गृहणियों की बचत तो अखबार के नीचे, कपड़ो के बीच मे, अलमारी के ऊपर, पता नही कहाँ -कहाँ उनकी इच्छाओ की तरह दबी पड़ी रहती है। पुरूषों की मंशा बचत की कम और शेयर मार्केट के बुल के साथ दौड़ने की ज्यादा होती है। इसलिए कभी तो उनकी पौ-बारह होते है और कभी मुँह के बल गिरते है, तो गृहणी की छोटी सी बचत आड़े समय मे कुबेर का खजाना लगती है। पर नोटबन्दी ने उन कुबेर के खजाने में जो सेंध लगाई थी उस सदमे आए अभी गृहणी उभर नहीं पाई है।
बचत रिश्तों की भी करनी बेहद जरूरी है। नए रिश्ते बनने पर या बड़े ओहदे पर पहुंचने पर अपने पुराने रिश्तों को नहीं भूलना चाहिए। क्योंकि 'जहां काम आवे सुई, कहा करे तलवार'।
ऑनलाइन रिश्ते को भी संजो कर रखना बेहद जरूरी है। कुछ लेखक जब बहुत ज्यादा सफल हो जाते हैं तो दूसरों को फॉलो करना छोड़ देते है। क्यों भाई? कभी आप भी उसी स्टेज पर थे। और पुराने साथियों की समीक्षा एक अलग ही मीठापन लिए होती है। पर ये भी है कि बहुत ज़्यादा नोटिफिकेशन आने से सभी की रचनायें पढ़ना मुमकिन नहीं हो पाता और कुछ जरूरी रचनाएँ भी छूट जाती हैं।
कड़वाहट और जलन की बचत ना करें, दूसरों का अहित करने के बाद यह आपको नुकसान पहचाना शुरु कर देती है।
आज के लिए बस इतना ही।
तुम्हारी सेविंग्स,
गीता भदौरिया