दिनांक: 06.04.2022
समय : रात 11: बजे
प्रिय डायरी जी,
आज मन बेहद ही क्लांत है। यूक्रेन के बूचा शहर में रूसी सेना ने जो तबाही मचाई है वो दिल दहला देने वाली है। शहर में हर तरफ बिखरी लाशें है। शहर मरघट में तब्दील हो चुका है। सड़कों पर बिखरी पड़ी लाशों के हाथ-पैर बंधे मिले हैं और महिलाओं को यातनाएं देकर मौत के घाट उतार दिया गया है। रूसी सेना ने कीव के पास के शहर बुचा में आम लोगों को टैंकों से कुचला दिया और बच्चों को भी नहीं बख्शा।
हैरानी होती है कि हमारे दोस्त की मानसिकता ऐसी है। मैं तो इस जघन्य अपराध की भरसक निंदा करती हूँ। बेकार है UN, शांति सेना, मध्यस्थता, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय और यूक्रेन के तथाकथित दोस्त अमेरिका। ऐसे दोस्त से तो दुःमं भले।
बुचा की तस्वीरें जिस बर्बरता की कहानी बयां कर रहीं हैं उसे शब्दों में यहां बताना भी एक तरह की मानसिक बर्बरता होगी।
यूक्रेन-रूस के युद्ध के संदर्भ में पहली बार भारत ने इस नरसंहार की निंदा की है और स्वतंत्र जांच कराने की मांग की है।
निंदा तो सभी कर रहे हैं, पर कौरवों को समझायेगा कौन?
गीता भदौरिया