दिनाँक : 05.04.2022
समय :रात 10:15 बजे
प्रिय डायरी जी,
'आजकल सभी नशे में हैं।" यह कहावत उत्तर प्रान्तों में बहुत प्रचलित है जिसका मतलब है "अपनी ईगो या शान में रहना"।
लेकिन वास्तव में सभी लोग नशे में ही रहते है। बड़े लोग वृद्ध हो जातें है पर उनकी अपनी ईगो रहती है। वे मानते ही नहीं कि उनके बच्चे बड़े होकर, प्रौढ़ होने लगे हैं।
बच्चे नशे में रहते है कि वे जेन वाई है। जेन एक्स आउटडेटेड और ऑर्थोडॉक्स है। उन्हें क्या पता!
बॉस का अलग ही नशा है, सुपीरियरटी काम्प्लेक्स। झुंझलाया हुआ आसमान को ताकता रहता है। जब ठोकर लग जाती है तो जनाब जमीन पर आते है।
मातहत का एक अलग ही नशा है कि सब कुछ हम करते है, बॉस को तो पकी-पकाई खीर मिलती है। हम प्रोपोजल बनाते है तो उसमें is, am, are सही कर देता है। फ्री की सैलरी मिलती है। हमारे बिना एक दिन में पता चल जाएगा।
सास का नशा तो पूछिये ही मत। मरते दम तक हैंग ओवर नहीं उतरता। बहु, चाहे 60 साल की हो, उसे कुछ भी उल्टा सीधा कहने का लाइसेंस परमानेंट है सास के पास।
बहु का नशा तो सास एक मिनट में उतार देती है। बहु बिचारी संस्कारी होने के नुकसान झेलती हुई सब जमा करती रहती है कि एक दिन वह भी ऐसी ही सास बनेगी, फिर देखेगी, एक एक को। लेकिन ऐसा दिन कभी नहीं आता।
इन सबसे ऊपर है सत्ता का नशा। जिसे यह नशा चढ़ जाए, उसे नहीं पता चलता कि किसके ऊपर गाड़ी चढ़ा दी, कहां आग लगवा दी, कितने लोग मर गए या लोगों के स्वास्थ्य या रोजगार का क्या होगा। कुर्सी की मिजाजपुर्सी से इन्हें फुरसत ही नहीं मिलती।
जनता ही ऐसा प्राणी है जिसे कोई नशा नहीं चढ़ता, भोले शंकर की तरह। उसके मन और शरीर में इतना जहर जा चुका है कि वह संवेदनहीन हो चुकी है।
कांग्रेस की सरकार आए या भाजपा या आप की इससे हमें क्या फर्क पड़ता है। हमारे लिए तो 'कोऊ नृप होय हमें का हानि, चेरी छाड़ हुइहें का रानी'।
जय श्रीराम
गीता भदौरिया