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Sailesh Patel की डायरी

Sailesh Patel

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भारतीय शादियां बहुत ही रंग बिरंगी होती है।यही कारण है कि बच्चाें से लेकर वृद्ध तक इस रंग में रंगने के लिए लालायित रहते हैं । बात गर्मियों के शादी के समय की है जब संस्कार को एक शादी में शरीक होने का मौका मिला। घर के अंदर बाहर मेहमानों की भीड़ थी शायद रश्म की शुरुआत होने ही वाली थी।ऐसे में संस्कार को एक गेस्ट रूम में ले जाकर जलपान के लिए बैठाया गया। कहने को तो वो गेस्ट रूम था लेकिन असलियत यह है की गांव में शादियों के दौरान किसी कमरे के विशेष होने का दर्जा खत्म हो जाता है जहां जगह मिलती है मेहमान जमा हो जाते हैं। कमरे में संस्कार पर नजर उनकी मौसेरी बहन की पड़ी और बड़े ही गर्मजोशी के साथ स्वागत भी किया । संस्कार के लिए ये एक सामान्य घटना ही थी क्योंकि कोई शहर से गांव की शादियों में सम्मिलित होने आए तो वह स्वयं के प्रति इस तरह के व्यवहार को सामने वाले का नैतिक कर्तव्य समझता था। कमरे में ही उपस्थित अन्य मेहमानों से धीमी आवाज में कुछ बात करने के बाद बाहर चली गईं। संस्कार तुरंत समझ गया कि मेरे बारे में ही सूक्ष्म जानकारी साझा की गई है । संस्कार की नजर एक लड़की पर पड़ी जिसके बालों को कैंची के माध्यम से एक व्यवस्थित और आकर्षक आकार देने का प्रयास किया जा रहा था। भारतीय समाज के महिलाओं की यही एक तो खासियत होती है वे अपने श्रृंगार को कभी अंतिम रूप नहीं दे पाती हैं , श्रृंगार किट से संबधित कोई ना कोई किरदार अधूरा रह ही जाता है । यही खास बात महिलाओं में समान रूप से देखने को मिलती । तभी वह लड़की मेरे सामने की तरफ मुड़ी , क्या चेहरा था ! ऐसा चेहरा जिसे पूरे जीवन भर भुलाया ही नहीं जा सकता। मेरे लिए अंतर करना बड़ा मुश्किल हो गया था कि यह चेहरे की सुंदरता है या मेरे आंखों के देखने की सुंदरता है,क्योंकि मैंने अपने जीवन में कभी भी सुंदरता के मामले में चेहरे को प्राथमिकता दी ही नहीं थी। चेहरे पर बालों का बार बार आना ऐसा लग रहा था मानों पूर्ण चंद्र को काली घटाएं रह रह कर आच्छादित कर रही हों। शायद उम्र में मुझसे दो या तीन साल छोटी होगी इसलिए बातचीत के क्रम में मैंने उनका नाम पूछा - बड़े ही आत्मविशवास और मुस्कुराहट के साथ श्रृष्टि नाम बताया। क्या आवाज थी! अभी तक तो केवल चेहरे का ही हृदयंगम हुआ था अब गले कि तासीर भी प्रकट हो गई थी , दोबारा आवाज सुनने के लिए मैंने जानबूझकर फिर से नाम पूछ लिया। आवाज में मक्खन जैसी मुलायमियत और शहद जैसी मिठास छन रही थी। रश्म की शुरुआत हो जाने के कारण बाहर आकार बैठना पड़ा फिर भी नजर मेरे फेवरेट कलर की गाउन पहने हुए श्रृष्टि को ही तलाश रही थी। बीच - बीच में दिख जाने पर महफिल में जान आ जाती थी । रश्म खत्म हो चुकी थी फ्लोर डीजे की तरफ सबके कदम बढ़ रहे थे । तभी अचानक कोई आकर मेरे बगल में बैठ गया मुड़कर देखा तो श्रृष्टि ही थी मुझे देखकर मुस्कुरा दी। मेरे शरीर में श्रृष्टि के स्पर्श से एक सिहरन सी हो जाती थी, जीवन में पहली बार इस तरह का अनुभव महसूस कर रहा था । अब एक दूसरे को जानने की कवायद विस्तार से शुरू हो गई। जब उसे पता चला कि लड़कियों में मेरी कोई मित्र नहीं है तब चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ आंखों में एक अजीब सी चमक देखने को मिली फ़िर वह आसमान की तरफ देखने लगी शायद ईश्वर को मन ही मन धन्यवाद दे रही थी।संस्कार ने अपने जीवन में लड़कियों को हमेशा प्रतिष्ठा की नजरों से ही देखा था, कभी भी किसी के भावनाओं का अतिक्रमण नहीं किया था । श्रृष्टि की दिनचर्या अनुशासित थी और मेरी खिचड़ी की तरह थी। लेकिन मुझे अब कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि मुझे स्वयं में बदलाव के लिए श्रृष्टि के रूप में एक प्रेरणा मिल गई थी अब मुझे पता चला कि लोग क्यों कहते हैं कि शादी कर दीजिए लड़का सुधार जाएगा। जीवन में प्रेम जैसे पवित्र भाव के आगमन से हमारे अंदर समर्पण , एकाग्रता और स्थायित्व का निर्माण होता है । शाम गहराती जा रही थी उस दिन तो वक़्त पर भी तरस आ रहा था कि आज वक़्त रुक जाये थोड़ा सा आराम कर ले ताकि मैं और श्रृष्टि साथ में कुछ पल और बिता सकें । मुझे प्यास लगी थी मैंने पानी के पात्र के पास खड़े एक मेहमान से पात्र में पानी की उपलब्धता के बारे में पूछा और उसने नहीं है जवाब दिया , श्रृष्टि ने भी सुना और वह तुरंत एक गिलास पानी लेकर आयी अब मेरी चेतना शून्य हो गई थी । क्योंकि पानी की उपलब्धता के बारे जिक्र करने वाला कोई और नहीं मेरी बहन ही थी जो नहीं जवाब देकर अपने में ही व्यस्त हो गई। और एक श्रृष्टि जो अभी कुछ घंटों से परिचित हुई थी इसके पहले केवल मेरा नाम ही सुना था उसने बिना कहे पानी लाकर दे दिया । मैंने आजतक अपने जीवन में सुंदरता , व्यवहारिकता और सादगी का ऐसा समागम कभी नहीं देखा था। हम लोगों ने साथ में भोजन भी किया । अब अपने आशियाने पर वापसी का समय था । श्रृष्टि के चेहरे पर मायूसी साफ साफ दिखाई दे रही थी जैसे उसे अपने किसी अमूल्य निधि खोने का एहसास हो रहा था हालांकि मुझसे जुड़े रहने के लिए श्रृष्टि ने मेरे साथ बिताए गए वक़्त के दौरान एक बार भी संचार माध्यमों का जिक्र नहीं किया शायद श्रृष्टि का स्वाभिमान ही उसे ऐसा करने से रोक रहा था। लेकिन श्रृष्टि ने मुझे बाध्य कर दिया । प्रेम की यही तो एक खासियत होती है सामने वाला हमारे अंदर एहसासों के रूप विराजमान हो जाता है और सभी औचारिकताएं पूरी कर लेता है। इसीलिए मुझे श्रृष्टि को अपना फोन नंबर न देना स्वयं के स्वाभिमान के अनुकूल होने के बजाय अपराध बोध महसूस करा रहा था। अंततः संपर्क सूत्र साझा हो ही गया। पार्ट २ अभी बाकी है।  

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