जीवन की सच्चाई पर आधारित मेरी एक और रचना आप सबको कैसी लगी अपने कमैंट्स में जरूर बताइयेगा 🙏
थी खुशियों से भरी जिंदगी बिंदास तरीके से....
जिया है हमने भी हर पल कुछ अपने ही सलीके से....
जेब में पैसे ना सही...
पर दुनिया खरीद सकने का हुनर रखते थे....
किसी भी चुनौती से भिड़ जाने का जिगर रखते थें....
टैम्पो का सफर कुल्लढ़ की चाय और पिक्चर की खुमारी रहती थी...
दोस्तों का साथ कुछ हसीं मज़ाक और जेब में पापा की दी हुई दिहाड़ी रहती थी...
तकलीफ ना थी जीवन में कोई
पर फिर भी ना जाने क्या मलाल रहता था....
के कब होंगे पूरे सपने मेरे बस ये ही सवाल रहता था....
फिर हम भी उतर आये एक दिन
इन सपनो की दौड़ में...
था मैं जो पहले कभी
हो गया कुछ और मैं....
छूट गई वो कुल्लढ़ की चाये...
छूट गया वो दोस्तों का साथ...
छूट गई वो पिक्चर की टिकट...
छूट गया वो हसीं मज़ाक...
मंजिल की तलाश में बहुत आगे निकल आया मैं...
भीड़ तो देखी बहुत मगर...
पर खुद को तन्हा पाया मैं....
मतलबी हुए है रिश्ते अब...
मतलबी हर लोग हुऐ...
मतलबी कुछ मैं भी हुआ...
और मतलबी ही मेरे शौक हुऐ...
अब हम भी हर रिश्ते को अपने फायदे से तोलने लगे...
पहले तो हम कड़वा सच कहते थें...
अब कुछ मीठा बोलने लगे...
दिल हो गया अब मेरा भी पत्थर का...
अब इसमें कोई गम ना रहा...
हम हैं आज वही सायद जो होना चाहते थें...
पर हमने अब वो हम ना रहा....
🙏संतोष शर्मा 🙏