पिता को समर्पित मेरी एक नई रचना 🙏
खुद को यूँ लुटा कर मुझे आबाद किया....
अए पापा मेरे तूने भी ये मेरा कैसा साथ दिआ....
छोटा सा था मैं जब ये ऊंच नींच छोटे बड़े का फर्क ना जनता था
पर पता नहीं कैसे उनकी गोद मे आकर मैं खुद को बड़ा मानता था....
जब एक कांटा भी मुझे चुभता था वो पूरा पेड़ उखाड़ देते थे....
एक पापा ही थे जो मुझे खुद से भी ज्यादा प्यार देते थे....
अंदर से वो नर्म पर ऊपर से कठोर रहते थे...
एक पापा ही थे जो जो हर तकलीफ हस कर सहते थे....
सिर्फ पापा ही नहीं मेरे यार थे वो....
आंख में आंशू जुबान से कठोर इस दुनिया के सबसे बड़े कलाकार थे वो....
पर किस्मत को था ना मंजूर शायद इसीलिए ये दौर हो गया.....
जबसे साथ छोड़ा तुमने मेरा मैं तुम्हारी ही तरह कठोर हो गया.....
था तालीफो में जीवन बीता उनका....
पर फिर भी मेरे जीवन में कोई कमी ना होने दी....
खुद के आंसू पीकर भी पूरी की मेरी हर फरमाहिशे....
पर मेरी आँखों में कभी नमी ना होने दी....
आज तस्वीर तुम्हारी देखी तो बस दिल में एक ही बात आई....
के काश तस्वीर में पड़ी इस माला का एक फूल बन जाता....
तुम्हारे माथे का तिलक ना सही
कम से कम तुम्हारे चढ़नो की धूल बन जाता....
मेरे दिल की हर बात अब वो डायरेक्ट खुदा से कहते हैं....
संतोष शर्मा
जबसे दूर हुए हैं मेरे पापा वो मेरे और भी करीब रहते हैं...