A poem based on reality
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<p>दोस्तों जीवन की सच्चाई पर आधारित मेरी एक और नई रचना आप सबके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ... जिसे पढ़
<p>पिता को समर्पित मेरी एक नई रचना 🙏</p> <p>खुद को यूँ लुटा कर मुझे आबाद किया....</p> <p>अए पापा मे
<p>जीवन की सच्चाई पर आधारित मेरी एक और रचना आप सबको कैसी लगी अपने कमैंट्स में जरूर बताइयेगा 🙏</p> <
<p>*क्या यही मुहब्बत है** </p> <p> </p> <p>आज कल थोड़ा बधहवाश् रहता हूँ मैं</p> <p>दूर होते
<p>क्यूं यू ही चुपचाप तुम हर जुल्म को सहते हो??</p> <p>कहते हो खुद को सूरज तुम पर फिर भी अँधेरे में
<p>मैं कौन हूँ मैं क्या batlau</p> <p>बस इतना समझ लो </p> <p><br></p> <p>तुम्हारे इन अनजान सवाल