1946 के बाद से ही राजनैतिक वनवास में पड़े सावरकर दुबारा चर्चा में तब आए जब गांधी-हत्या के
बाद शक की सूई उनकी तरफ़ भी गई। असल में डॉ. जगदीश चन्द्र जैन नामक एक व्यक्ति ने गांधी-
हत्या षड्यंत्र के बारे में मदनलाल ढींगढीं रा से मिली जानकारी गांधी पर हुए पहले हमले के बाद बम्बई
प्रान्त के तत्कालीन गृहमंत्री मोरारजी देसाई को दी थी, जिसमें सावरकर का भी नाम था।
हालाँकि उनकी जानकारी पर उस समय तो कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया गया, लेकिन गांधी-हत्या के
बाद नियुक्त किए गए जाँच अधिकारी नागरवाला ने पहला काम किया, बम्बई में सावरकर के घर पर
छापा मारने का। इसमें कोई डेढ़ सौ फ़ाइलें और दस हज़ार काग़ज़ात ज़ब्त किए गए। हालाँकि छापे
के बाद सावरकर को तुरन्त गिरफ़्तार नहीं किया गया क्योंकिक्यों यह डर था कि उस समय उनकी
गिरफ़्तारी से पूरे बम्बई प्रान्त में आग लग सकती थी। बहुत बाद में मालगाँवकर से बातचीत में
नागरवाला ने कहा—अपनी आख़िरी साँस तक मुझे यह भरोसा रहेगा कि सा वरकर ने ही गांधी-हत्या
का षड्यंत्र रचा था।