स्त्रियां शिकार होती हैं
आदमी की हवस का
घूरती नजरों का,
असहनीय तानों का।
मन ही मन घुटती हैं,
जब उसके चरित्र पर
उठती हैं उंगलिया।
भले ही लांघी है,
घर की दहलीज।
फिर भी जीवन भर
खड़ी शक के दायरे में।
मर्यादित होने की सारी,
अपेक्षाएं केवल स्त्री से।
छल,बल से लांघता,
रहा सदियों से,
सारी लक्षण रेखाएं
आदमी ही।