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आज बरसो बाद मैंने उस संदूक को देखा जिसपर एक धुँधला सा नाम लिखा था अक्षर धुँधला थे या मेरी आँखें कमज़ोर? मालूम नहीं संदूक खोलते ही, हवा का झोंका मानो छू कर निकला हो मुझे उसी ख़ुशबू की उम्मीद में