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।।शायद तेरी मांगी मुकम्मल दुआ नहीं हूं।।

2 अप्रैल 2022

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आवारा झोंके सा जिस्म तेरा छू कर निकल जाऊं वो बहती हवा नहीं हूं मैं
तेरे रूह में कैद रहना चाहता हूं है,पर शायद तेरी मांगी मुकम्मल दुआ नहीं हूं मैं
नहीं चाहती मेरे संग दर्द बांटना,शायद तेरे लिए नहीं रहा तेरा हमदर्द अब 
तेरे आंसुओं भरी दर्द से निकलने को प्यार की शायद अब वो दवा नहीं हूं मैं
आवारा झोंके सा जिस्म तेरा छू कर निकल जाऊं वो बहती हवा नहीं हूं मैं
तेरे रूह में कैद रहना चाहता हूं है,पर शायद तेरी मांगी मुकम्मल दुआ नहीं हूं मैं

गर है तुझसे इश्क करना कोई गुनाह तो बेशक मुझे इसकी सजा दे
मोहब्बत तो है नेमत उस रब का,तेरी नज़र में गर ये भूल है तो कोई जायज इसकी वजह दे
गर दूर होना मुझसे,खुशी है तेरी तो बेशक हो जा पर इतना जान ले इश्क में तेरे बेवफा नहीं हूं मैं
आवारा झोंके सा जिस्म तेरा छू कर निकल जाऊं वो बहती हवा नहीं हूं मैं
तेरे रूह में कैद रहना चाहता हूं है,पर शायद तेरी मांगी मुकम्मल दुआ नहीं हूं मैं।।

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