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शिव दयाल"सुलेख"

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एक सहमी हुई, सिमटी हुई कालों मेंधूल धूसरित लालों मेंखुद कंटकों पर चलती थी।एक ऐसी देवी जो कठिनाइयों का सामना करते हुएउसे गले लगाती रही।घर वाले कुछ भी कहते थेबिना क्रोध किए सुन लेती थी।सत्य की पराकाष्ठा पर सदा अडिग रही,वह मां जो मुझे थपकी देती थीवह मांजो मुझे मार जता कर सुपथ पर लाती रही,वह मांजिसके जाने से मेरे चौखट के उजाले बुझ गये हैं,उसी मां के चेहरों की दमक तक नही आती।मुझमें कभी कभी आहटें उठती हैंजिसमें वो मेरेरथ रूपी विचारों पर सवार रहती हैवह जोमेरे दुःख दर्द को देखकर सह नही सकती थी,अपने निवालों में मेरा हक सदा रखती थी।उनकी स्मृतियां दिल के भूखण्ड परकण कण में समाहित हो उठी हैं,जिसका प्रादुर्भाव इस हिय क्षितिज परसदा मौजूद है।मेरी हर नादानी को क्षमा करो मांमैं अभागा हूं, अपराधी हूं और तुम मुझे बाल्यावस्था में अकेला छोड़ चली गईममता के बंधन को बिखेर।मेरी शादी भी नही हो पाई थी तेरे रहते,अब यूं ही शादी होगीतब मुझे स्तनपान कौन करायेगासारे रिवाजों मेंअग्रणी कौन बनेगाविवाह के गीत कौन गायेगाअपने शावक के विवाह पर खुशियां कौन लुटायेगा।आने वाली नव प्रिया को साथ कौन लगाएगाअच्छे गुण कौन देगाभले राहों पर कौन लायेगावर कन्या को आशीर्वाद कौन देगा,आप देवी स्वरुप हो मांआप मेरे पलकों तले दृश्यमान होती हैं।मेरी आपसे यही प्रार्थना हैमेरे हर खुश पलों में अपने अन्य देवियों के साथमेरे दरवाजे पर जरूर आना और आशीर्वाद जरूर देना,तेरे पदरज से मेरे द्वार की भूमिधन्य हो जाएगी।।___शिव दयाल 

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