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श्रीधर पाठक के बारे में

श्रीधर पाठक (११ जनवरी १८५८ - १३ सितंबर १९२८) प्राकृतिक सौंदर्य, स्वदेश प्रेम तथा समाजसुधार की भावनाओ के हिन्दी कवि थे। वे प्रकृतिप्रेमी, सरल, उदार, नम्र, सहृदय, स्वच्छंद तथा विनोदी थे। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापति हुए और 'कविभूषण' की उपाधि से विभूषित भी। उनका जन्म उत्तर प्रदेश में जौंवरी नाम गांव, तहसील-फ़िरोजाबाद, जिला- आगरा में पंडित लीलाधर के घर हुआ। श्रीधर पाठक सारस्वत ब्राह्मणों के उस परिवार में से थे जो 8 वीं शती में पंजाब के सिरसा से आकर आगरा जिले के जोंधरी गाँव में बसा था। एक सुसंस्कृत परिवार में उत्पन्न होने के कारण आरंभ से ही इनकी रूचि विद्यार्जन में थी। छोटी अवस्था में ही इन्होंने घर पर संस्कृत और फ़ारसी का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। तदुपरांत औपचारिक रूप से विद्यालयी शिक्षा लेते हुए ये हिन्दी प्रवेशिका (१८७५) और 'अंग्रेजी मिडिल' (१८७९) परीक्षाओं में सर्वप्रथम रहे। फिर 'ऐंट्रेंस परीक्षा' (१८८०-८१) में भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। उन दिनों भारत में ऐंट्रेंस तक की शिक्षा पर्याप्त उच्च मानी जाती थी। उनकी नियुक्ति राजकीय सेवा में हो गई। सर्वप्रथम उन्होंने जनगणना आयुक्त रूप में कलकत्ता के कार्यालय में कार्य किया । उन्होंने काव्य को अपेक्षाकृत अधिक स्वच्छंद, वैयक्तिक और यथार्थभरी दृष्टि से देखने का सफल प्रयास किया जिससे आगामी छायावादी भावभूमि को बड़ा बल मिला और पूर्वागत परंपरित रूढ़ काव्यढाँचा टूट गया। सफल काव्यानुवादों द्वारा उन्होंने हिंदी को नई दृष्टि देने का प्रयत्न किया। यद्यपि उन्होंने ब्रजभाषा और खड़ीबोली दोनों में रचनाएँ कीं तथापि समर्थक वे खड़ीबोली के ही थे। थोड़े में, उनके काव्य की विशेषताएँ हैं - सहज प्रकृतिचित्रण, वैयक्तिक अनुभूति, राष्ट्रीयता, नए छंदों, लयों और बंदिशों की खोज, विषयप्रधान दृष्टि, नवीन भावप्रकाशन

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श्रीधर पाठक की पुस्तकें

प्रसिद्ध कविताएँ

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श्रीधर पाठक (११ जनवरी १८५८ - १३ सितंबर १९२८) प्राकृतिक सौंदर्य, स्वदेश प्रेम तथा समाजसुधार की भावनाओ के हिन्दी कवि थे। वे प्रकृतिप्रेमी, सरल, उदार, नम्र, सहृदय, स्वच्छंद तथा विनोदी थे। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापत

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प्रसिद्ध कविताएँ

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श्रीधर पाठक (११ जनवरी १८५८ - १३ सितंबर १९२८) प्राकृतिक सौंदर्य, स्वदेश प्रेम तथा समाजसुधार की भावनाओ के हिन्दी कवि थे। वे प्रकृतिप्रेमी, सरल, उदार, नम्र, सहृदय, स्वच्छंद तथा विनोदी थे। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापत

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तिलिस्माती मुँदरी

तिलिस्माती मुँदरी

श्रीधर पाठक (११ जनवरी १८५८ - १३ सितंबर १९२८) प्राकृतिक सौंदर्य, स्वदेश प्रेम तथा समाजसुधार की भावनाओ के हिन्दी कवि थे। वे प्रकृतिप्रेमी, सरल, उदार, नम्र, सहृदय, स्वच्छंद तथा विनोदी थे। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापत

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तिलिस्माती मुँदरी

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श्रीधर पाठक (११ जनवरी १८५८ - १३ सितंबर १९२८) प्राकृतिक सौंदर्य, स्वदेश प्रेम तथा समाजसुधार की भावनाओ के हिन्दी कवि थे। वे प्रकृतिप्रेमी, सरल, उदार, नम्र, सहृदय, स्वच्छंद तथा विनोदी थे। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापत

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श्रीधर पाठक के लेख

भारतोत्थान

16 अगस्त 2022
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भारत, चेतहु नींद निवारौ।  बीती निशा उदित भए दिन-मनि, कबकौ भयौ सकारौ॥  निरखहु यह शोभा-प्रभात वर, प्रभा भानु की अद्भुत।  किहि प्रकार क्रीड़ा-कलोल-मय विहग करहिं प्रात-स्तुत॥  बिनस्यौ तम-परिताप पाप सँ

बलि-बलि जाऊँ

16 अगस्त 2022
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(1)  भारत पै सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ  बलि बलि जाऊँ हियरा लगाऊँ  हरवा बनाऊँ घरवा सजाऊँ  मेरे जियरवा का, तन का, जिगरवा का मन का,  मँदिरवा का प्यारा बसैया  मैं बलि-बलि जाऊँ  भारत पै सैयाँ मैं बलि-ब

भारत-श्री

16 अगस्त 2022
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जय जय जगमगित जोति,  भारत भुवि श्री उदोति कोटि चंद मंद होत,  जग-उजासिनी निरखत उपजत विनोद,  उमगत आनँद-पयोद सज्जन-गन-मन कमोद-वन-विकासिनी विद्याऽमृत मयूख,  पीवत छकि जात भूख उलहत उर ज्ञान-रूख,  सुख-प

भारत-गगन

16 अगस्त 2022
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(1)  निरखहु रैनि भारत-गगन  दूरि दिवि द्युति पूरि राजत, भूरि भ्राजत-भगन  (2)  नखत-अवलि-प्रकाश पुरवत, दिव्य-सुरपुर-मगन  सुमन खिलि मंदार महकत अमर-भौनन-अँगन  निरखहु रैनि भारत-गगन  (3)  मिलन प्रिय

सुंदर भारत

16 अगस्त 2022
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(1)  भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है  शुचि भाल पै हिमाचल, चरणों पै सिंधु-अंचल  उर पर विशाल-सरिता-सित-हीर-हार-चंचल  मणि-बद्धनील-नभ का विस्तीर्ण-पट  अचंचल सारा सुदृश्य-वैभव मन को लुभा रहा है  भा

स्मरणीय भाव

16 अगस्त 2022
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वंदनीय वह देश, जहाँ के देशी निज-अभिमानी हों।  बांधवता में बँधे परस्पर, परता के अज्ञानी हों।  निंदनीय वह देश, जहाँ के देशी निज-अज्ञानी हों।  सब प्रकार पर-तंत्र, पराई प्रभुता के अभिमानी हों॥ 

हिंद-महिमा

16 अगस्त 2022
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जय, जयति–जयति प्राचीन हिंद जय नगर, ग्राम अभिराम हिंद जय, जयति-जयति सुख-धाम हिंद जय, सरसिज-मधुकर निकट हिंद जय जयति हिमालय-शिखर-हिंद जय जयति विंध्य-कन्दरा हिंद जय मलयज-मेरु-मंदरा हिंद

बलि-बलि जाऊँ

16 अगस्त 2022
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1. भारत पै सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ बलि-बलि जाऊँ हियरा लगाऊँ हरवा बनाऊँ घरवा सजाऊँ मेरे जियरवा का, तन का, जिगरवा का मन का, मँदिरवा का प्यारा बसैया मैं बलि-बलि जाऊँ भारत पै सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ

निज स्वदेश ही

16 अगस्त 2022
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निज स्वदेश ही एक सर्व-पर ब्रह्म-लोक है निज स्वदेश ही एक सर्व-पर अमर-ओक है निज स्वदेश विज्ञान-ज्ञान-आनंद-धाम है निज स्वदेश ही भुवि त्रिलोक-शोभाभिराम है सो निज स्वदेश का, सर्व विधि, प्रियवर, आराधन क

स्वदेश-विज्ञान

16 अगस्त 2022
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जब तक तुम प्रत्येक व्यक्ति निज सत्त्व-तत्त्व नहिं जानोगे त्यों नहिं अति पावन स्वदेश-रति का महत्त्व पहचानोगे जब तक इस प्यारे स्वदेश को अपना निज नहिं मानोगे त्यों अपना निज जान सतत-शुश्रूषा-व्रत नहिं

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