(1)
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है
शुचि भाल पै हिमाचल, चरणों पै सिंधु-अंचल
उर पर विशाल-सरिता-सित-हीर-हार-चंचल
मणि-बद्धनील-नभ का विस्तीर्ण-पट
अचंचल सारा सुदृश्य-वैभव मन को लुभा रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है
(2)
उपवन-सघन-वनाली, सुखमा-सदन,
सुख़ाली प्रावृट के सांद्र धन की शोभा
निपट निराली कमनीय-दर्शनीया कृषि-कर्म की
प्रणाली सुर-लोक की छटा को पृथिवी पे ला रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है
(3)
सुर-लोक है यहीं पर, सुख-ओक है
यहीं पर स्वाभाविकी सुजनता गत-शोक है
यहीं पर शुचिता, स्वधर्म-जीवन, बेरोक है
यहीं पर भव-मोक्ष का यहीं पर अनुभव भी आ रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है
(4)
हे वंदनीय भारत, अभिनंदनीय भारत
हे न्याय-बंधु, निर्भय, निबंधनीय भारत
मम प्रेम-पाणि-पल्लव-अवलंबनीय
भारत मेरा ममत्व सारा तुझमें समा रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है