जय जय जगमगित जोति,
भारत भुवि श्री उदोति कोटि चंद मंद होत,
जग-उजासिनी निरखत उपजत विनोद,
उमगत आनँद-पयोद सज्जन-गन-मन
कमोद-वन-विकासिनी विद्याऽमृत मयूख,
पीवत छकि जात भूख उलहत उर ज्ञान-रूख,
सुख-प्रकासिनी करि करि भारत विहार,
अद्भुत रंग रूपि धारि संपदा-अधार,
अब युरूप-वासिनी स्फूर्जित नख-कांति-रेख,
चरन-अरुनिमा विसेख झलकनि पलकनि निमेख,
भानु-भासिनी अंचल चंचलित रंग,
झलमल-झलमलित अंग सुखमा तरलित तरंग,
चारु-हासिनी मंजुल-मनि-बंध-चोल,
मौक्तिक लर हार लोल लटकत लोलक अमोल,
काम-शासिनी उन्नत अति उरज-ऊप,
बिलखत लखि विविध भूप रति-अवनति
कर-अनूप-रूप-रासिनी नंदन-नंदन-विलास,
बरसत आनंद-रासि यूरप-त्रय-ताप
नासि-हिय-हुलासिनी भारत सहि चिर वियोग,
आरत गत-राग-भोग श्रीधर
सुधि भेजि तासु सोग-नासिनी