*श्री कृष्ण गीता अध्याय 6:अंक 1*
इस पूरे अध्याय को एक वाक्य में लिखे तो
*connect to the higher consciousness daily*
अर्थात उच्च परमात्मा से प्रतिदिन जुड़े।
पिछले अध्याय में अर्जुन ने जानना चाहा था कि कर्म योग और सन्यास (सांख्य) में कौन बेहतर है। भगवान ने कर्मयोग को साधन में सुलभ बता कर बेहतर बताया,फिर दोनों को बिस्तार से समझाया। अंत मे ध्यान की बात भी बताई।इस अध्याय में भक्ति युक्त कर्मीयोग की प्रसंसा करके अपने संयम पर विशेष बल दिया है ,इसलिए इस अध्याय का नाम *आत्मसंयम योग* कहा है।
इस अध्याय में कुल 47 श्लोक हैं।प्रथम 1-4 श्लोकों में योगारूढ़ कौन है ,समझाया है।5-7 में बताया कि व्यक्ति अपना ही मित्र और शत्रु भी है।8-9 में भगवत्प्राप्त के लक्षण बता कर 10-15 उच्च योग की क्रिया क्या हो पर प्रकाश डाला है।16, 17 में योगी कैसा हो क्या योग के नाम पर बिल्कुल न भोजन करे या ज्यादा करे आदि पर ज्ञान दिया गया है। श्लोक 18 में कहते हैं चित्त परमात्मा से लग जाय ,कल्याण हो जाएगा।ध्यान कैसा हो 19,वे में बता कर 20 से 23 तक कहते है ध्यान का महत्त्व क्या है।24,25 श्लोक में उपरति की सलाह देते है।कैसे उपरति हो यह26 -29 तक ध्यान से सभी भूतों का व्रह्म में होना बता कर 30 वें में कहते है जो मुझे सर्वत्र देखता है सबको मुझमें देखता है,उसके लिए मैं नही छपता।31,32 में कहते है दूसरों के दुख को अपना ही समझो।33 वें में अर्जुन को शंका होती है कि मन तो बहुत चंचल है ये कैसे रुके,इस पर 35,36 में समाधान बताते हैं।37-39 में अर्जुन फिर शंका करते है कि जो योग में सफल नही हुआ,उसकी गति क्या होगी? 40-46 तक भगवान उनकी शंका का निवारण करते हैं और निष्कर्ष 47 में देते हैं "श्रद्धावान योगी जिसका मन मुझमें लगा हो,वह परम श्रेष्ठ है।"
निदान ये की हर समय ध्यान बना रहे कि परमात्मा ही सर्वस्व है,उसके अतिरिक्त कुछ नही। सदा उस परम में मन को लगा दे।ऐसा ही सुरु में कहा है कि "connect to the higher consciousness daily".