33 करोड देवी देवता !ॐ , एक ओमकार ,परमेश्वेर, ईश्वर, भगवान
हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उडाई गयी की हिन्दुओ के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं...
सबसे पहली बात तो ये की अधूरा ज्ञान खतरना होता है।
वैसे ही जैसे बिना सीखे आप कार चलने लग जाये ! ऐसे में एक ही काम हो सकता है गाडी ढुकेगी !
इसलिए अपने हिन्दू भाई ऐसे ही गाडी ठोकते रहते है ! उनसे मेरी एक गुजारिश है अगर किसी बात का आपको पता नही है या अनुभव नही है और कोई सवाल कर बैठे तो उसका बिना सोचे समझे जवाब नही देना चाहिए ! गलत जवाब देने से अच्छा है माना करदो ! मतलब बिना सीखे गाडी मत चलाओ ऐसे में आप खुद भी बचेंगे और दुसरो को भी बचाएंगे !
बहुत से लोग ज्यातर इस्लामिक प्रवक्ता या ईसाई लोग जो हर महीने भारत में लगभग 5000 - 1000 लोगो को ईसाई या मुस्लिम बना रहे है ईसाई बनाने का धंदा बहुत ज्यादा जोरो पर है इनके इस कारनामे से और हिन्दुओ की नपुंसकता के कारण पिछले 2 साल में 1 लाख के करीब लोग ईसाई बन चुके है ! जोकि आगे चलकर एक बहुत बड़े आंदोलन का हिस्सा बन भारत को तोड़ने के लिए पुरजोर कोशिश करेंगे ! और ढोंगी हिन्दू अपनी चड्डी बचाते फिरेंगे ! अगर ऐसा होने से देश को बचाना है तो इसका सिर्फ एक ही रास्ता है स्वयं को जागरूक बनाकर दुसरो को जागरूक करना ! लड़कर आप जीत नही सकते क्योकी नकारात्मक शक्तिया बहुत ज्यादा बड़ रही है ! और हिन्दू नपुंसक होते जा रहे है ! लड़ना है तो अज्ञानता का मुखोटा उतारकर और ज्ञान की तलवार का तिलक लगा कर लड़ना होगा ! विजय अवश्य होगी !
अब बात करते है 33 करोड भगवान की :-
इस लाइन का शीर्षक (title)ही गलत है ये शीर्षक दिया ही इसलिए गया है ताकि ज्यादा से ज्यादा असर करे ! और ये साजिश बिलकुल कामयाब भी हुई है ! ये आप सब जानते है ! क्योकी आप में से बहुत से लोगो ने अपनी ये मूरखता जरूर कभी न कभी दिखाई होगी !
सबसे पहले तो ये जानने की कोशिश करते है की ये देवता होता क्या है और कौन होता है
सबसे पहले हम बात करते है परम तत्व जिसका अस्तित्व कण कण में समाया है !
वैसे तो उसे किसी शब्द में नही बांधा जा सकता न ही अकार में लेकिन अगर किसी भी ऊर्जा का अस्तित्व अगर है तो उसके अस्तित्व को महसूस करने वाले प्राचीन महान ऋषि मुनियो और नए युग के गुरु नानक जैसे परब्रह्म के अनुभवित ज्ञाताओं ने उसे शब्द रूप में जाना और उसके अस्तित्व
की शुद्ध जानकारी दी यह जानकारी वेदो के ज्ञान में भी शुद्ध रूप में है !
{शब्दों का खेल }
उसे हम जो अज्ञात (यानि जिसको पूर्ण रूप से कोई नहीं जान सकता )को ॐ , एक ओमकार ,परमेश्वेर, ईश्वर, भगवान जैसे शब्दों में पाते है !
ये परम तत्व की ऊर्जा के नाम है जैसे उसकी एक ऊर्जा का नाम वायु है उसकी सभी उर्जाये अज्ञात है हर बंधन से मुक्त !
ॐ या एक ओमकार - ऊर्जा के मूल शब्द रूप है !
परमेश्वर - परम + ईश्वर यानि तमाम ऐश्वर्यो से भी जो परम है,
ईश्वर - तमाम श्रष्टि के ऐश्वर्या का जो भोक्ता है !
भगवान - भूमि + गगन + वायु + अग्नि +नीर (जल) जिसकी उर्जाये है !
ये सब गुण रूप जिसमे है वही हमारा बनाने वाला सर्वशक्तिमान परमेश्वेर है !
कुछ लोग कहते है ईश्वर एक है लेकिन वो सिर्फ मूरखता में ऐसा कहते है अगर कोई ज्ञानी महापुरुष ऐसा कहता है तो वह भी इन मूर्खो को समझने के लिए ही कहता है लेकिन वो भी जनता है की ईश्वर अनेक भी है और एक भी है ! एक से अनेक है और अनेक में भी एक है ! ये बात बहुत ज्यादा गहरी है शायद समझ में न आये इसलिए आप उसे एक ही समझना !
अब अपने देखा होगा की ऊपर के शब्दों में "देवता" शब्द नही आया !
आपने एक शब्द सुना होगा परमात्मा
जब परमात्मा शब्द के मूल में जाते है तो बनता है परम + आत्मा ! ऊपर के जितने भी शब्द है ये उन सभी का केंद्र बिंदु है ! इसके बिना जीवन का अस्तित्व ही नही है !
गजब है न शब्दों का गणित न कोई संख्या न कोई इंसान न कोई शरीर न कोई विज्ञानं ! खैर आगे चलते है !
परम शक्ति से जब कोई शक्ति अलग होती है तो वो तीन श्रेणियों में विभाजित हो जाती है ! यहाँ शायद आपका ध्यान विज्ञानं के परमाणु नाभिकीय विखंडन पर गया होगा (मुझे परमाणु के बारे में कोई ज्ञान नही है क्योकी छोटी मोटी बातो पे मै ध्यान नही देता ) !
वैसे ही यहाँ भी ऊर्जा का तीन श्रेणियों में विभाजन होता है !
वो श्रेणियाँ है:-
1 परम आत्मा - परम आत्मा अनेक में एक ही है
2 देव आत्मा - देव आत्मा परम आत्मा का अभिन अंग है उससे सदा जुडी रहती है
3 जीव आत्मा - जीव आत्मा तीसरी श्रेणी है ! अब ये मत सोचना की इसमें सिर्फ हम इंसान है इसमें हर एक प्राणी है जिसमे जीवन है ! उन सभी प्राणियों की अलग अलग श्रेणियाँ है ! फिरसे परमाणु के बारे में एक बार सोचलो ! परम सिद्ध ज्ञान के अनुसार ये लगभग 84लाख श्रेणियाँ है !
जिसको आप 84 लाख योनि के नाम से जानते है !(इसके बारे में फिर कभी बताऊंगा)
कोई बोर हो गया हो तो थोड़ा पानी पि लेना हजम भी अच्छे से हो जायेगा !
जीव आत्मा में श्रेष्ठ है मनुष्य आत्मा जो सब जीवो से ताक़तवर बुद्धिवान हर एक शक्ति से परिपूर्ण है !
लेकिन यहाँ आकर ये आत्मा बंधन में पड़ जाती और प्रकृति के अधीन शरीर में फंस जाती है अब आत्मा के ऊपर एक नयी शक्ति का कब्ज़ा हो जाता है जिसे माया (nature) कहते है ! क्योकी माया से इस शरीर का निर्माण हुआ है तो ये माया में लिप्त रहता है क्योकी धरती माया के अधीन है ! अब यहाँ से मानव स्वतंत्र होने की प्रक्रिया को मुक्ति कहते है या मोक्ष कहते भी अपने सुना होगा !
ये मुक्ति और मोक्ष भी दोनों शब्द अलग है
१. मुक्ति अर्थात माया के बंधन से मुक्ति !
ये वैसे तो बहुत बड़ा प्रसंग है लेकिन फिरभी बताने की कोशिश करता हुँ ! प्रकृति के तीन गुण है
सत्व ,रजस और तामस ,
तामस जानवरो का गुण है क्योकी उनमे ज्ञान रूपी चेतना नही होती ! इसलिए जो मानव मांस भक्षण करते है उन्हें तामसिक कहा जाता है वो अज्ञानता वश मांस भक्षण करते है !
रजस गुण में लोग मायावादी होते है ये माया में लिप्त रहते है, शराब , वस्यवृति , तला भुना भोजन आदि में जीवन का सुख खोजते है !
सत्व गुण सबसे महान है इसमें इंसान शुद्ध पवित्र और जागरूक होता है और इसी गुण को धारण करने से माया में रहते हुए भी मुक्त रहता है और अपनी चेतना को जागृत करता है जिससे उससे इश्वेर अनुभूत भी हो सकती है! ऊपर के दोनों गुण सिर्फ मित्या है इसी गुण में मुक्ति संभव है ! ये सम्पूर्ण पाप रहित जीवन है
२. मोक्ष अर्थात जन्म मरण के चाकर से मुक्त होना !
इसमें भी दो रस्ते है दुवैत वेदांत और अदुवैत वेदांत ! इनके दुवारा आप परम आत्मा में मिल जाते हो ! अर्थात दुबारा जीवात्मा में जन्म नही लेना पड़ता !
इसी प्रकार जीवात्मा जब मनुष्य योनि में होती है तभी ये संभव है की वह कर्म के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करे !
जो मनुष्य इश्वेर की शुद्ध भगति करता है वही देवत्व को प्राप्त होता है और देवत्व की प्राप्ति के बाद सरे बंधन छूट जाते है और परमात्मा में विलीन हो जाता है !
कोई भी मनुष्य देवत्व को प्राप्त किये बिना सीधे सीधे परमात्मा को नही जान सकता !
अर्थात मन वचन कर्म से शुद्ध होकर ही आप देवत्व को प्राप्त कर ईश्वर यानि परमात्मा के दर्शन का अनुभव कर सकते है !
इसीलिए जिस भी पुरुष ने इसे स्वीकार कर सत्व गुण में रहकर साधना योग से देवत्व को प्राप्त किया उसे ही देव कहा गया !
और देव कोई एक या दो नही है हजारो सालो में हजारो की संख्या में है !
लेकिन सवाल ये है की ये बात सामने क्यों आती है की इसपर सवाल उठाया जाता है की 33 करोड देवी देवता है हिन्दुओ के !
जब ये बात लिखी गयी या सुनने में आई तब वैदिक कॉल था वैदिक काल में जिन्होंने उच्च कोटि की साधना की जैसे की ध्रुव ने की तो उनके साथ एक शब्द जोड़ा गया " उच्च कोटि" मतलब ये उच्च कोटि के भगत हुए इसलिए इन्हे देव माना गया !
यहाँ उच्च कोटि का मतलब किसी संख्या से नही बल्कि भगत की भाव शुद्धता से या एकाग्रता से है ! जब इस बात का प्रचार हुआ तो तब तक जिन्होंने भी उच्च कोटि(प्रकार) की तपस्या की वो 33 पुरुष थे जिनके नाम भी आज तक दर्ज है
ये कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ
12 प्रकार हैँ (कोटि)
आदित्य , धाता, मित, आर्यमा,
शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष,
सविता, तवास्था, और विष्णु...!
8 प्रकार हे :-
वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।
11 प्रकार है :-
रुद्र: ,हर,बहुरुप, त्रयँबक,
अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी,
रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।
एवँ
दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार।
कुल :- 12+8+11+2=33 कोटी
इनके बाद नविन युग में भी बहुत से देवत्व को प्राप्त हुए जिनकी कोई निश्चित संख्या नही है
अब लेख को विराम देता हुँ क्योकी बहुत लम्बा हो रहा है , कोई सवाल हो तो कमेंट में लिख सकते है मै आपके हर सवाल का जवाब देने की पूरी शक्ति से कोशिश करूँगा ,,,,,,,,आप सभी ईशपुत्रो को मेरा दंडवत परनाम ! मुझसे कोई गलती हुई हो तो मुझे बहुत ही छोटा , छोटो में भी छोटा समझकर माफ़ करे ...
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