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मै सोमेंद्र मिश्रा 'सोम' विज्ञानं वर्ग से स्नातक हु मेरी आयु २० वर्ष है मै हिंदी साहित्य का बहुत शौक़ीन हु मै स्वयं हिंदी कविताये और लघु कथाये लिखता हु मेरी एक कविता ' जब आज़ाद हुआ यह हिंदुस्तान' कानपूर नगर (उ.प्र.) के नगर छाया अखबार में ८/३/२०१४ पृष्ठ संख्या ११ पर प्रकाशित हो चुकी है मै अब तक २० से ज्यादा रचनाये लिख चूका हु

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चलता गया ज़िन्दगी में

19 जून 2015
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चलता गया ज़िन्दगी में ! चलता गया ज़िन्दगी में !! ना किसी की परवाह , ना कोई सहारा ! ना किसी की चाह, ना कोई हमारा !! किसको किसकी फिकर है , इस ज़िंदगी में ! बढ़ता गया ज़िन्दगी में ,बढ़ता गया ज़िन्दगी में !! ये समय है वैरागी , ये समय है चलगामी ! जो समझा वो टिका है , ना समझा चल बसा है !! बढ़ते रहो इस डग

गम को पीने का तरीका आना चाहिए

18 मई 2015
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अपना दुखड़ा किसी से न गाना चाहिए , गम को पीने का तरीका आना चाहिए ! इस दुनिया के मेलो में जी न लगाना चाहिए , गम को पीने का तरीका आना चाहिए !! ये मेले यहाँ के चकाचौंध वाले , इसमें फंसे है देखो ये दुनिया वाले ! तम्बू उखड़ते ही तमाशा ख़त्म है , मेले की भीड़ को बस यही एक गम है !! भीड़ को अपने मन को समझा

मन ही जाने मन की व्यथा

3 मई 2015
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ये मन ही जाने , मन की व्यथा ! तुझे क्या पता , तुझे क्या पता !! है झूठे जग में , हर कोई फंसा ! तुझे क्या पता , तुझे क्या पता !! है सब में मै मै , और अपना पराया ! इस दलदल में फंसकर , उबर कोई न पाया !! है सुनाते सभी , अपनी दांस्ता ! तुझे क्या पता ,तुझे क्या पता !! ये जीवन का संघर्ष , भण्डार दु

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