29 जनवरी 2017
कुछ कविता येँ,यूँ कह लें कुछ अभिव्यक्तियाँ,इतनी पूर्णता में होती हैं कि उन्हें नहीं चाहिए होती है किसी की प्रतिक्रिया अपने भीतर का पाठक उसे अनगिनत नज़रियों से पढता है कुछ मिटाता है कुछ जोड़ता है ...सत्य और कल्पना रक्त में पुरवा की तरह प्