शुभांगी को उस पूरी रात नींद नहीं आई। सारी रात ये सोचते सोचते कट गई कि उसकी मां के बुरे इरादों से बचने के लिए क्या कदम उठा सकती थी।
सुबह तक उसने तय कर लिया कि उसको क्या करना है। वो कालेज के पहले जॉन के घर पहुंच गई।
जॉन को देखते ही वो उसके गले लग कर फूट फूटकर रोने लगी। जॉन उसके इस तरह रोने से परेशान हो उठा।
" क्या हुआ शुभी ? " उसने शुभांगी के चेहरे को बड़े प्यार से ऊपर उठाते हुए कहा। शुभांगी ने सुबकते हुए उसको अपनी मां के इरादों के बारे में बताया।
जॉन उसकी बात सुनकर अवाक रह गया। उसने शुभांगी को सहारा देकर सोफे पर बैठाया और उसे पानी पीने को दिया। शुभांगी उसकी बांहों में अब कुछ राहत महसूस कर रही थी।
" मुझे अपने साथ मुंबई ले चलिए। मैं अब यहां नहीं रहना चाहती। " शुभांगी ने जॉन की बांह को कसकर पकड़कर कहा।
" ऐसा कैसे होगा शुभी ? तुम्हारी मां उस पुलिस वाले की मदद से हमें ढूंढ ही लेगी। " जॉन ने शंका जाहिर की।
" मैं कुछ नहीं जानती कि कैसे होगा। या तो आप मुझे अपने साथ ले चलो या मैं फांसी लगाकर जान दे दूंगी लेकिन ये सब अब नहीं झेलूंगी। " शुभांगी ने जिद के साथ धमकी दी और फिर से रोने लगी।
जॉन ने उसे जोर से अपनी बाहों में कस लिया और सोचने लगा कि वो क्या करे। वो भी शुभांगी को इस नर्क में नहीं छोड़ना चाहता था क्योंकि वो भी उससे प्यार करता था।
कुछ देर सोचने के बाद जॉन बोला,
" मैं एक काम करता हूं। मैं कल ही कॉलेज में मुंबई के लिए जाने का बताकर निकल जाता हूं लेकिन मुंबई नहीं जाऊंगा बल्कि दिल्ली जाऊंगा। तुम्हारे लिए भी परसों की दिल्ली की टिकट ला दूंगा। तुम भी दिल्ली आ जाना। अलग-अलग निकलेंगे तो किसी को शक नहीं होगा। "
शुभांगी ने जॉन की बात पर सहमति दर्शायी क्योंकि वो जानती थी कि जॉन सही कह रहा था, दत्ता इतनी आसानी से उसका पीछा नहीं छोड़ने वाला था और उसे ढूंढ़ने के लिए जमीन आसमान एक कर देता।
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शुभांगी दिल्ली में स्टेशन के बाहर खड़ी जॉन का इंतजार कर रही थी तभी उसे बायीं तरफ़ से जॉन आता दिखा। शुभांगी मुस्कुराती हुई जॉन की तरफ़ बढ़ गईं।
सभी कुछ प्लान के अनुसार हुआ था और शुभांगी आसानी से दिल्ली पहुंच गई थी।
अपनी मां से इतनी नफ़रत के बावजूद भी शुभांगी को उसे छोड़ते हुए बहुत दुख हो रहा था। ट्रेन में बैठे हुए सारे रास्ते उसे अपनी मां तनुजा की याद आती रही और उसकी आंखें भर आती थीं।
पता नहीं क्या बीती होगी मां पर ये सोचकर वो बार बार बेचैन हो जाती थी लेकिन शुभांगी जानती थी कि अपनी मां से दूर जाना उसके लिए बहुत जरूरी था।
जॉन ने शुभांगी को देखते ही गले लगा लिया। शुभांगी भी खुश होकर उससे लिपट गई।
जॉन टैक्सी करके शुभांगी को अपने एक दोस्त के घर ले गया। उसके दोस्त का घर संकरी और घने लेकिन साफ सुथरे इलाके में बनी एक पुरानी सी एक तीन मंजिला बिल्डिंग के दूसरे माले पर था। घर में हॉल, दो कमरे और किचन था। छोटा सा बाथरूम भी एक कोने में बना हुआ था। उस इलाके में अधिकतर क्रिश्चियन ही रहते थे।
" शुभी ! दो तीन दिन हम यहां रहेंगे फिर हम दूसरा घर ढूंढ लेंगे। " जॉन ने शुभांगी के असमंजस भरे भाव पढ़कर उसे आश्वस्त किया। शुभांगी ने हल्के से सिर हिलाकर सहमति दी।
जॉन के दोस्त ने उनको अपना कमरा दे दिया था और खुद दूसरे कमरे में अपने पार्टनर के साथ शिफ्ट हो गया था।
शुभांगी ने दिए गए कमरे में अपना सामान रखा और कमरे को व्यवस्थित करने में लग गई। कुछ ही देर में बिखरा हुआ कमरा अच्छा दिखने लगा था।
तीन दिन हो गए थे। जॉन ने एक कॉलेज में जॉब ज्वाइन कर लिया था। शुभांगी अभी घर पर रहकर खाना बनाना, साफ सफाई करना वगैरह करने के बाद आराम करती थी। शुभांगी को ऐसी जिंदगी नहीं जीना थी। उसे आगे पढ़ना था। उसने तय किया कि वो जॉन से इस बारे में बात करेगी।
चौथे दिन जॉन ने कॉलेज से लौटकर बताया कि नजदीक ही एक कालोनी में उसने फ्लैट देखा था और कल शिफ्ट होना था।
दूसरे दिन वो उस फ्लैट में शिफ्ट हो गए। वो एक अच्छा वन भी एच के फ्लैट था जो चौथे माले पर था। शुभांगी को वो फ्लैट बहुत पसंद आया।
रात को शुभांगी ने जॉन से कहा,
" जॉन ! मुझे पढ़ाई चालू रखना है, आप मेरा एडमिशन किसी कॉलेज में करवा दो। "
जॉन ने तुरंत सहमति जताई क्योंकि वो जानता था कि शुभांगी पढ़ने में बहुत तेज थी और पढ़ाई में उसका बहुत मन लगता था।
अगले दो दिन में ही जॉन ने शुभांगी का एक कॉलेज में एडमिशन करा दिया। शुभांगी को अपनी जिंदगी पटरी पर आती दिखने लगी।
**** क्या शुभांगी की जिंदगी वाकई पटरी पर आ गई थी ? कौनसा तूफान उसकी जिंदगी के दरवाजे पर आ चुका था ? जानने के लिए पढ़ें अगला भाग ****