शुभांगी हमेशा की तरह कॉलेज में क्लास में सिर झुकाकर बैठी प्रोफेसर का इंतजार कर रही थी। आज कोई नए प्रोफेसर आने वाले थे इसलिए स्टुडेंट्स की हाज़िरी लगभग फुल थी क्योंकि प्रिंसिपल भी साथ में उनको इंट्रोड्यूस करवाने आने वाले थे।
वो कॉलेज में किसी से बात नहीं करती थी। उसे झिझक लगती थी कि अगर किसी ने उसके और उसके परिवार के बारे में पूंछ लिया तो क्या बताएगी। उसको रंजन की बहुत याद आती थी। क्लास में भी वो उसके और उसके साथ बिताए पलों के बारे में सोचती रहती थी जैसा कि वो अभी भी कर रही थी।
रंजन की याद में शुभांगी इतनी डूबी हुई थी कि उसे प्रिंसिपल के आने का पता ही नहीं चला। सारे स्टुडेंट्स खड़े हो गए लेकिन वो बैठी ही थी। उसके बगल में बैठी एक लड़की ने उसे हाथ से हल्का सा धक्का दिया तब उसकी तंद्रा टूटी। वो झटके से खड़ी हुई तो उसकी नज़र पहले प्रिंसिपल पर पड़ी फिर उनके बगल में खड़े एक युवा इंसान पर पड़ी। उस इंसान को देखते ही वो धक से रह गई। बिल्कुल रंजन जैसी आंखें। वैसी ही नीली आंखें। वो अपलक उसको देखती रह गई।
" दिस इज मिस्टर जाॅन ! योर न्यू गेस्ट प्रोफेसर ! ही विल गिव यू स्पेशल क्लासेज आॅफ इंग्लिश फॉर थ्री मंथ्स। " प्रिंसिपल ने उनका परिचय करवाया। जॉन ने मुस्कुरा कर हल्का सा सिर हिलाया। सभी स्टुडेंट्स ने उनको मॉर्निंग विश किया। शुभांगी अभी भी उनको घूरकर देख रही थी। तभी उनकी नज़र शुभांगी पर पड़ी। शुभांगी ने अचकचा कर अपनी नज़रें झुका लीं।
जॉन सर ने शुभांगी के रंजन की यादों के तारों को छेड़ दिया था। उनकी आंखों ने उसके सामने जैसे रंजन को ही लाकर खड़ा कर दिया। जाॅन सर ने पढ़ाना शुरू कर दिया लेकिन शुभांगी का उनके पढ़ाने पर रत्ती भर ध्यान नहीं था। वो बस अपलक उनकी आंखों को देखे जा रही थी। उनकी नीली आंखें उसे जैसे अपनी तरफ़ खींचे जा रही थीं। उनका पीरियड खत्म हुआ और वो जब क्लास से जाने लगे तो शुभांगी बेचैन हो उठी।
जैसे ही कॉलेज से घर जाने का टाइम हुआ, शुभांगी के कदम स्टाफ रूम की तरह बढ़ गए। स्टाफ रूम में उसे जॉन सर एक कार्नर वाली चेयर पर बैठे दिखे। वो उनकी तरफ़ चल पड़ी। उनके पास पहुंचकर उसने धीरे से कहा,
" एक्सक्यूज मी सर ? "
जॉन ने नज़रें उठाकर उसकी तरफ़ देखा और कहा,
" येस ? "
उनकी नीली नजरों में शुभांगी खो जाती इसके पहले उसने अपने आपको सम्हाला और कहा,
" सर ! आय एम शुभांगी ! फर्स्ट इयर स्टुडेंट ! सेक्शन एम-2 ! आय हैव अ रिक्वेस्ट। "
" येस ! गो अहेड। " जॉन ने उसको ध्यान से देखते हुए कहा।
" सर ! मुझे इंग्लिश में कुछ डिफिकल्टीज़ हैं। केन आई गेट सम एक्स्ट्रा टाइम व्हेन कॉलेज इज ओवर ? " शुभांगी ने निवेदन के अंदाज में कहा।
जॉन ने नज़र उठाकर कुछ देर शुभांगी को देखा फिर कुछ देर सोचने के बाद कहा,
" ओके ! बट ओनली टेन मिनिट्स। "
" दैट्स इनफ सर ! थैंक यू सो मच सर। " शुभांगी ने खुश होकर उनका शुक्रिया अदा किया और वहां से घर के लिए निकल गई।
उस दिन के बाद से शुभांगी जॉन सर के पास कॉलेज के बाद एक्स्ट्रा क्लास लेने लगी। वो जब भी उनकी आंखों को देखती थी उसे रंजन के पास होने का अहसास होता था। जॉन को भी शुभांगी का साथ अच्छा लगने लगा था। वो भी उसको ज्यादा से ज्यादा वक्त देने लगे थे। कुछ दिन के बाद शुभांगी उनके घर पर पढ़ने जाने लगी। दोनों में नजदीकियां बढ़ती जा रही थीं।
एक इतवार के दिन शुभांगी उनके घर पर ही थी तब जॉन ने शुभांगी का हाथ पकड़ लिया। शुभांगी थोड़ा घबरा गई लेकिन उसे उनका स्पर्श अच्छा लगा। उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे रंजन ने उसको छुआ हो। उसने विरोध नहीं किया। जॉन ने उसे अपनी बाहों के घेरे में ले लिया। शुभांगी भी उनकी बांहों में सिमट गई। जॉन ने अपने होंठ उसके होठों पर रख दिए। शुभांगी के शरीर में एक लहर दौड़ गई। उस वक्त उसे बस ये अहसास हो रहा था कि वो रंजन के आगोश में है। उसने आंखें बंद कर लीं और रंजन को याद करके उसे महसूस करने लगी।
जॉन के हाथ उसके बालों से गुजरकर कंधे से होते हुए उसके सीने के उभारों पर पहुंच गए। वो जॉन से और सट गई। जॉन ने उसके होंठों को चूमते हुए उसके कपड़ों को खोलना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद जॉन के हाथ उसके नग्न शरीर पर फिर रहे थे। शुभांगी का अहसास अब उत्तेजना में बदलने लगा था। उसने अपने आप को पूरी तरह सौंप दिया। अब वो जॉन को अपने भीतर पाकर स्त्रीसुलभ कामोत्तेजना के उस अहसास को अनुभव कर रही थी जो एक लड़की को अपने प्रियतम के साथ संभोग करने पर होती थी। उसने भी इसमें जॉन का साथ देना शुरू कर दिया।
कुछ देर बाद दोनों संभोग सुख के चरम पर पहुंचकर निढाल होकर एक-दूसरे के बगल में लेट गए। दत्ता के दरिंदगी भरे बलात्कार के बाद इस अहसास ने उसे सुकून दिया। कुछ देर ऐसे ही लेटे रहने के बाद उसे अहसास हुआ कि उसके बदन पर कपड़े नहीं हैं। लाज के मारे उसने वहीं पड़ी एक चादर उठा कर लपेटी और अपने कपड़े समेटकर बाथरूम की तरफ़ दौड़ लगा दी। कपड़े पहनकर बाथरूम से निकलकर बिना जॉन की तरफ़ देखे तेजी से वहां से चली गई।
अब उन दोनों का मिलकर इस तरह प्यार करना लगभग रोज का शगल हो गया था। वो जॉन में रंजन को पाने लगी थी। इसी तरह तीन माह बीत गए। वो अब खुश रहने लगी थी।
पर ऊपरवाले को उसकी जिंदगी में खुशियों का आना कहां मंज़ूर था।
जॉन के कॉलेज से जाने का वक्त करीब आ रहा था, इस बात से शुभांगी वैसे ही बेचैन और दुःखी थी तभी उसकी मां तनुजा ने उसे बताया कि तीन दिन बाद कुछ बड़े लोग आ रहे हैं दत्ता के यहां और उसे उन्हें खुश करने जाना था। अच्छे खासे पैसे मिलने थे। उसका मन अपनी मां के प्रति घृणा से भर गया। खुश करने का मतलब वो बखूबी जानती थी। तीन दिन बाद उसके साथ जो होगा उस बात की कल्पना करके ही वो सिंहर उठी।
अब वो ये सब नहीं सह सकती थी। उसे कुछ सख़्त फैसला लेना ही था। लेकिन क्या ? उसे ये तो समझ नहीं आ रहा था कि फैसला क्या लेना था लेकिन उसने तय कर लिया था कि अब वो किसी भी हालत में तनुजा की पैसों की हवस और दत्ता जैसे लोगों की क्रूर वासना का शिकार नहीं बनेगी। उसने अपने बचाव के रास्तों पर विचार करना शुरू कर दिया।
** क्या शुभांगी खुद को अपनी मां के बुरे इरादों बचा पाई ? जॉन और उसके रिश्ते का क्या अंजाम हुआ ? शुभांगी ने अपने भविष्य के लिए क्या फैसला लिया ? जानने के लिए पढ़ें अगला भाग **