शुभांगी को समझ नहीं आ रहा था कि इतने सालों बाद अपनी तलाश पूरी होने पर वो खुश हो या अफसोस करे। जिस रंजन की तलाश सारी जिंदगी वो टुकड़ों टुकड़ों में करती रही वो आज उसके सामने साक्षात खड़ा था जब वो अपनी जिंदगी के दिन उंगलियों पर गिन सकती थी।
कनाडा के टोरंटो शहर के एक अस्पताल के आई सी यू में भर्ती पैंतालीस वर्षीय शुभांगी ब्लड कैंसर की लास्ट स्टेज के कारण मृत्युशय्या पर अपनी जिंदगी के आखिरी कुछ दिन गुज़ार रही थी तभी एक डॉक्टर की वेशभूषा में रंजन उसके सामने आकर खड़ा हो गया। वो रंजन को देखते ही पहचान गई। आखिर क्यों न पहचानती, ये रंजन ही तो था जो उसके ख्यालों, यादों और ज़हन से एक पल के लिए भी जुदा नहीं हुआ था।
रंजन ने जब उसकी पल्स चैक करने के लिए उसकी कलाई थामी उसके शरीर में वैसे ही सिहरन दौड़ गई जब किसी लड़की को पहली बार अपने प्रेमी के द्वारा स्पर्श करने पर महसूस होती है। उसने हलकी सुकून भरी मुस्कान के साथ अपनी आंखें इस तरह मूंद ली जैसे रंजन के हाथों में अभी उसके प्राण निकल भी जाएं तो उसे भगवान से कोई शिकायत नहीं होगी।
जब शुभांगी ने आंखें खोली तो रंजन जा चुका था ।
उसने व्याकुलता से इधर उधर देखा लेकिन रंजन वहां कहीं नहीं था। उसने फिर आंखें मूंद लीं और अपने आप को अतीत में धकेल दिया।
पांच साल की शुभांगी दौड़ते दौड़ते घर आई और अपनी मां से बोली,
“ आमी राजुर साथे खेलते जाआछि “ ( मैं राजू के साथ खेलने जा रही हूं )
" ठीक आछे सुब्बो ! किंतु तताड़ी घोरे एसे जाईस “ ( ठीक है सुब्बो ! लेकिन घर जल्दी आ जाना ) उसकी मां तनुजा ने हिदायत के साथ जाने की इजाजत दी।
“ ठीक आछे मां “ ( ठीक है मां ) बोलते हुए शुभांगी पास के स्कूल के मैदान की तरफ़ भागी क्योंकि वहां रंजन उसका इंतज़ार कर रहा था। शुभांगी रंजन को उसके घर के नाम राजू से बुलाती थी और रंजन उसे सुब्बो कहता था जो कि शुभांगी का घर का नाम था।
रंजन एक आठ साल का नीली आंखों वाला, अंग्रेजों जैसा गोरा, नुकीली नाक नक्श का सुंदर बच्चा था। वो पास के एक बड़े मकान में रहता था। वो अपने पंजाबी पिता सुरिंदर बाजवा और कनैडियन मां एलेना का इकलौता बेटा था। सुरिंदर बाजवा बिजनेस के लिए कनाडा गया था जहां उसकी पहचान एलेना से हुई और दोनों ने शादी कर ली।
एलेना एक एनजीओ में काम करती थी और उसी एनजीओ के काम से उसे इंडिया में कोलकाता आना पड़ा। सुरिंदर भी अपना कनाडा का बिजनेस समेटकर उसके साथ कोलकाता आ गया और सुजानबाड़ी में एक मकान खरीदकर अपना बिजनेस शुरू कर दिया। सुजानबाड़ी कोलकाता से सिर्फ डेढ़ सौ किलोमीटर दूर था और यहां से कोलकाता का इंडस्ट्रियल एरिया सिर्फ सत्तर किलोमीटर ही दूर था। सुजानबाड़ी में उसे बहुत सस्ते में ये मकान मिल गया था इसलिए सुरिंदर ने इस कस्बे को अपना ठिकाना बनाया था। उसे यहां आए बस एक साल ही हुआ था। यहां आकर उसने रंजन का एडमिशन घर के पास के स्कूल में करवा दिया था। उसी स्कूल में शुभांगी भी पढ़ती थी। एक ही बस्ती में रहने के कारण शुभांगी और रंजन में बहुत अच्छी दोस्ती हो गई थी।
अब ये दोनों का रोज़ का शगल था कि जब भी वक्त मिलता दोनों साथ खेलने चल देते। शुभांगी को रंजन की नीली आंखें बहुत पसंद थीं। भोलेपन में वो उससे एक बार पूंछ चुकी थी कि रंजन ने अपनी आंखें ब्लू कलर कैसे करवाया था। उसकी इस बात पर रंजन बहुत हंसा था और फिर उसको समझाया था कि ये पैदाइशी हैं और कलर नहीं करवाया था। ऐसे ही रंजन को शुभांगी की बहुत सारी बातें पसंद थीं, जैसे उसके लंबे रेशमी बाल, उसका भोलापन, उसकी हंसी और उसका बेहद खूबसूरत होना।
शुभांगी की मां वहीं एक दोमंजिले साधारण मकान के निचले हिस्से में सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री की दुकान चलातीं थीं। अक्सर शाम को अलग-अलग लोग उसके घर आते थे जो कुछ देर रुककर चले जाते थे। उस वक्त शुभांगी की मां उसे नीचे वाले हिस्से में ही रहकर पढ़ने को कहकर उन मर्दों के साथ ऊपर के हिस्से में चली जाती थीं और शुभांगी को ऊपर न आने की सख्त हिदायत होती थी। शुभांगी को पढ़ना बहुत पसंद था और वो पढ़ाई में बहुत तेज भी थी इसलिए वो खुशी खुशी अपनी मां की बात मान लेती थी। उसे कतई इस बात का जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि उसकी मां उन मर्दों के साथ ऊपर क्या करती थी।
ऐसे ही आठ साल गुजर गए। अब दोनों ने यौवन की दहलीज पर कदम रख दिया था। रंजन सिर्फ सोलह साल का होने के बावजूद अच्छी उंचाई और हष्ट-पुष्ट शरीर की बनावट के कारण हैंडसम युवक दिखने लगा था। शुभांगी भी उसकी हमउम्र लड़कियों की तुलना में शारीरिक तौर पर ज्यादा सम्हल गई थी और महज़ तेरह वर्ष की उम्र में युवती दिखने लगी थी। इस वज़ह से वो बहुत सुन्दर दिखने लगी थी।
अब भी दोनों वैसे ही मिला करते थे क्योंकि शुभांगी की मां अपनी तथाकथित व्यस्तता के कारण उसकी दिनचर्या पर ज्यादा ध्यान नहीं देती थी और रंजन चूंकि एक विदेशी मां का बेटा था इसलिए उसकी खुले विचारों वाली मां को दोनों के साथ खेलने पर कोई आपत्ति नहीं थी। वैसे भी एलेना शुभांगी को बचपन से पसंद करती थी और अब दोनों अधिकतर रंजन के घर पर ही खेलते थे।
शुभांगी मन ही मन रंजन से प्यार करने लगी थी लेकिन वो ये नहीं समझ पा रही थी कि ये अहसास प्यार कहलाता है। रंजन को शुभांगी का साथ बहुत अच्छा लगता था लेकिन वो भी इस अहसास से अंजान था।
लेकिन अपनी इस दुनिया में खोये दोनों को इस बात का भी जरा सा अहसास नहीं था कि उनकी जिंदगी में दूरियां पैदा होने वाली थीं और शुभांगी की शांत नदी जैसी बहती जिंदगी में समुंदर जैसा तूफान आने वाला था।
** क्या था वो तूफान ? जानेंगे अगले भाग में **