shabd-logo

तलाश भाग - 3

22 अक्टूबर 2021

51 बार देखा गया 51
दत्ता शुभांगी को वासना भरी कुटिल निगाह से देखता हुआ कवर्ड की तरफ़ गया और वहां से शराब की एक बोतल और गिलास निकालकर सोफे पर आकर बैठ गया। उसने सामने रखी सेंटर टेबल पर बोतल रखी और गिलास में शराब भरने लगा। उसकी इस हरक़त को देखकर शुभांगी थर थर कांपने लगी। जैसे ही दत्ता का ध्यान उस पर से हटा उसने दरवाजे की तरफ़ दौड़ लगा दी। दरवाजे की चिटकनी खोलकर उसने दरवाजे को खोलने के लिए धक्का दिया।

दरवाजा नहीं खुला। वो जोर जोर से दरवाजे को भड़भड़ाने लगी कि शायद उसके पल्ले फंसे हों लेकिन दरवाजा नहीं खुल रहा था। उसे अहसास हुआ कि दरवाजा बाहर से भी बंद था। उसने चिल्ला कर अपनी मां को आवाज़ लगाई।

" कैनो पोरेशान होछिश। तोर मां ही तो दोरजा बायर ठीके बॉन्दो कोरेछे। ऊनि बीस हजार टाका नियेछे, तोर जोन्नो। चुपचाप एदिके ऐसे बोसे जा। केऊ अस्बे ना तोके बचाते। ( क्यों परेशान हो रही है। तेरी मां ने ही दरवाजा बाहर से बंद किया है। उसने बीस हजार रुपए लिए हैं तेरे बदले। चुपचाप यहां आकर बैठ जा। कोई नहीं आने वाला तुझे बचाने ) " पीछे से दत्ता की नशे में थरथराती आवाज आई।

शुभांगी ने पलटकर दत्ता की तरफ़ देखा। वो हाथ में गिलास लिए आराम से सोफे पर बैठा मुस्कुरा रहा था। शुभांगी को उसकी बात पर भरोसा नहीं हुआ। उसे विश्वास था कि उसकी मां उसके साथ ऐसा कर सकती थी। उसने फिर से दरवाज़ा खोलने की कोशिश करते हुए अपनी मां को जोर जोर से आवाज़ लगाई। उसे दूसरी तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली लेकिन वो कोशिश करती जा रही थी।

तभी उसे अहसास हुआ कि दत्ता उसके पास खड़ा था। वो घबराकर पलटी। दत्ता ने उसे आराम से अपनी बाहों में उठा लिया और बेड पर पटक दिया। वो जोर जोर से रोकर गिड़गिड़ाने लगी लेकिन उस राक्षस को उसकी इस बेचारगी पर मजा आ रहा था। वो ठहाका लगाकर हंसने लगा। शुभांगी ने लेटे लेटे उसके पेट में पूरी ताक़त से लात मारी। दत्ता तिलमिला गया। उसने अपने भारी हाथ से एक जोर का तमाचा शुभांगी को जड़ दिया। उस तमाचे से शुभांगी अपने होश खोने लगी। दत्ता जानवरों की तरह उस पर टूट पड़ा। उस कमरे में शुभांगी की दर्दनाक चीखें गूंज रही थीं जिनको सुनने वाला वहां कोई नहीं था। उसकी सगी मां भी नहीं।

दत्ता ने सारी रात वहशी भेड़िए की तरह शुभांगी को नोचकर अपने बीस हजार रुपए वसूले।

शुभांगी को जब होश आया तो उसे नहीं मालूम था कि दूसरे दिन दोपहर हो चुकी थी। उसने देखा कि दत्ता उसके बगल में नींद में बेसुध पड़ा था। उसने उठने की कोशिश की तो उसके शरीर में दर्द की एक तेज लहर दौड़ गई जिससे उसकी चीख निकल गई। उसके शरीर पर कपड़े की एक चिंदी भी नहीं थी। वो वापस लेट गई। कुछ देर अपने आप को संयत करने के बाद वो उठी और किसी तरह कपड़े पहने फिर लड़खड़ाते कदमों से दरवाजे की तरफ़ चल पड़ी। उसके धक्का देने पर दरवाजा खुल गया।

बाहर निकलने पर उसने अपनी मां की तलाश में इधर-उधर नज़रें दौड़ाईं। तनुजा का कहीं अता-पता नहीं था। वो धीरे धीरे अपने घर की तरफ़ चल पड़ी।

तनुजा अपनी दुकान पर बैठी थी। शुभांगी को आता देख उसने नज़र उठाकर उसकी तरफ़ देखा और वापिस ग्राहक को सामान देने में मशगूल हो गई। शुभांगी ने घृणा भरी नज़रों से अपनी मां को देखा और घर के अंदर चली गई। अपने बिस्तर पर गिरकर शुभांगी फूट फूटकर रोने लगी। उसे दत्ता से ज्यादा अपनी मां पर गुस्सा आ रहा था। दत्ता तो राक्षस था ही लेकिन उसकी मां तो सगी थी, वो कैसे अपनी सोलह साल की मासूम बेटी को पैसों के लिए किसी भेड़िए को सौंप सकती थी ? जिस मां की क्षत्रक्षाया  में एक बेटी सबसे सुरक्षित होती थी उसी मां ने उसे बेच दिया था। वो बुरी तरह टूट चुकी थी।

कुछ देर बाद तनुजा अंदर आई और शुभांगी के बगल में पलंग पर बैठ गई। शुभांगी ने मुंह फेर लिया। तनुजा ने उसके सिर पर हाथ फेरा तो शुभांगी ने उसका हाथ झटक दिया और बिस्तर से उठकर दूर जमीन पर बैठ गई।

" आमाके छुबे ना। तोमाथिके भालो तो सौतमां होए। कम कोरे निजेर मेके तो बिकरी कौरे ना। शौरोम आसे आमाके तोमाके निजेर मां बोलते। ( मुझे छूना भी मत। तुमसे अच्छी तो सौतेली मां होती हैं। कम से कम अपनी बेटी का सौदा तो नहीं करतीं। शर्म आती है मुझे तुम्हें अपनी मां बोलने में। ) " शुभांगी नफ़रत भरे स्वर में बोली।

" तुई की बुझिस कि ऐतो जे आराम मिलता कोरे तुई जीवोंन काटते आछीस सौब बस एई छोटो दोकान थेके कमाईछि ? तुई ऐक बारे एतो होल्ला चिल्ला कोरेछिस आर आमी रोज निजेर सोरीर बिकरी कोरी। कोनोदिन चिंता कोरेछिस तौर बाबा जोखोंन तोके आमार कोले छेड़े ओननो बोऊर साथे भेगे गेछिलो तोखोंन आमी केमनी तोके जोनम दीएछि आर एतो बोड़ो कोरेछि ? ( तू क्या समझती है कि तू ये आराम की जिंदगी जी रही है वो इस छोटी सी दुकान की कमाई से है ? तू एक बार में इतना हो-हल्ला मचा रही है और मैं रोज अपना जिस्म बेचती हूं। कभी सोचा कि जब तेरा बाप तुझे मेरी कोख में छोड़कर दूसरी औरत के साथ भाग गया था तब मैंने कैसे तुझे पैदा किया और इतना बड़ा किया ? ) " तनुजा ने तेज आवाज़ में कहा।

" जोनम ही कैनो दिए छो ? पेटे ही मेरे देते तो भालो होतो। कौम कोरे ये दिन तो देखते होतो ना। ( पैदा ही क्यों किया ? कोख में ही मार देती तो अच्छा होता। कम से कम आज ये दिन तो नहीं देखना पड़ता मुझे। ) " शुभांगी ने चिल्ला कर कहा।

" मारते पारिणी। निर्बोल होए गेछिलाम। जोखोंन तोके पालार जोन्नो काज खुजते बेरोय छिलाम चारों दिके बस सियाल छीलो जे आमार मान मोरजोदा सौब खैमचिए खाभार जोन्नो बोसे छीलो। आमी तो बिना खे थीके निताम तोके खिदे ते देखे केमनी सोज्जो कोरताम। हेरे दिए छेड़े दीएछि निजे के आई सियालयेर सामने। जे कोस्टो तुई आज सोज्जो कोरेछिस से कोस्टो आमी ओनेक आगे थीके सोज्जो कोरेछि आर आजो कोरते आछी। ( नहीं मार पाई। कमजोर हो गई थी तब। जब तुझे पालने के लिए काम ढूंढ़ने निकली तो चारों तरफ़ भेड़िए ही भेड़िए थे जो मुझे नोच खाने के लिए तैयार बैठे थे। अपनी भूख तो बर्दाश्त कर लेती लेकिन तेरी भूख बर्दाश्त नहीं हुई। हारकर सौंप दिया अपने आप को उन भेड़ियों की हवस की आग में। जो दर्द तूने आज झेला है वो मैने भी बरसों पहले झेला है और आज तक झेलती आ रही हूं। ) " कहते कहते तनुजा की आंखों में आंसू आ गए।

" जोखोंन तुइ जंतिस सोब तो आमाके कैनो फेलछिस एई किचोड़े ? जोखोंन तोके भालो लागतो ना तो आमाके तो बचाए नीतीश। ( जब तूने ये झेला तो मुझे भी क्यों झौंक दिया इस दलदल में ? जब तुझे पसंद नहीं था तो मुझे तो बचा लेती। ) " शुभांगी ने तनुजा से चिढ़कर कहा।

" बचाये ही रेखेछि तोके। एबार तुइ दोत्तोर सोंगरोझणे आछीस। एबार केऊ तोर उपोरे नोजोर डिबेना कारूर एतो हिममोत नाइ। में ! एबार अदोत बनियेने, एई तोर किस्मोत( बचाया ही है तुझे। अब तू उस दत्ता के संरक्षण में है। अब कोई भी तुझपर नज़र डालने की हिम्मत नहीं करेगा। और हां ! अब आदत डाल ले इसकी। यही तेरा मुकद्दर है। ) " तनुजा शुभांगी को अपना फ़ैसला सुनाकर वहां से चली गई।

शुभांगी अपनी मां की बात सुनकर फिर ऐसा होने की कल्पना करके एकबारगी तो कांप ही गई। वो अपने घुटनों में सिर छुपाकर फूट फूटकर रोने लगी। उसे रंजन की बहुत याद आ रही थी। आज रंजन और ऐलेना आंटी होतीं तो शायद उसे बचा लेती।

" तुम मुझे छोड़कर क्यों चले गए रंजन ? कहां मिलोगे मुझे तुम ? जहां भी हो मुझे अपने पास बुला लो। मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती। " ऐसा सोचते और रोते पूरा दिन निकल गया। शाम को उसने अपना मन इस घटना से हटाने के लिए अपनी किताबें निकाली और पढ़ाई करने की कोशिश करने लगी।

अब आए दिन दत्ता उसे बुलाने लगा। महीने में दो या तीन बार ऐसा होता था। शुभांगी से ये बर्दाश्त तो नहीं हो रहा था लेकिन वो कुछ कर नहीं सकती थी। उसने इसे अपनी नियति मान लिया था। अब उसने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया।

ऐसे ही समय बीतने लगा। शुभांगी अब कॉलेज में पहुंच गई थी। उसने तय कर लिया था कि वो पढ़ाई के दम पर ही अपना मुकद्दर बदलेगी लेकिन सोचा हुआ कहां होता है ? उसकी जिंदगी में फिर एक ऐसा मोड़ आने वाला था जो उसकी जिंदगी की दिशा ही बदलने वाला था।

** ऐसा क्या हुआ शुभांगी की जिंदगी में ? जानने के लिए पढ़िए अगला भाग **

विशेष : दोस्तों इस कहानी में जो बांग्ला वाक्य लिखे हैं उनका हिंदी से बांग्ला में अनुवाद के लिए मैं  " उर्वशी घोष " उर्वी " जी का दिल से आभार करता हूं। 🙏🙏

Pragya pandey

Pragya pandey

बड़ी ही दुष्ट मां थी ऐसा कोई करता है क्या अपनी ही बेटी के साथ 😢😢

22 अक्टूबर 2021

शिव खरे "रवि"

शिव खरे "रवि"

22 अक्टूबर 2021

जी सच कहा आपने। उसके बाद इस बात को वो मजबूरी का बहाना लेकर सही सिद्ध करने का प्रयास कर रही है

5
रचनाएँ
तलाश
5.0
एक लड़की, जो बचपन में जिस लड़के के साथ खेलते बड़ी हुई और अपनी मोहब्बत का इज़हार करने से पहले ही उस लड़के के अचानक चले जाने के बाद उसकी तलाश में उसके जैसी समानताओं वाले मर्दों द्वारा बार-बार छली गई। उसकी इस तलाश भरी भटकन की कहानी जो तब पूरी हुई जब उसके पास वक्त नहीं था।
1

तलाश भाग - 1

18 सितम्बर 2021
12
5
6

<div>शुभांगी को समझ नहीं आ रहा था कि इतने सालों बाद अपनी तलाश पूरी होने पर वो खुश हो या अफसोस करे। ज

2

तलाश भाग - 2

8 अक्टूबर 2021
3
2
2

शुभांगी को रंजन की हर बात भाने लगी थी। उसकी नीली आंखों से वो मोहित हो जाती थी। उसका अंग्रेजों जैसा ग

3

तलाश भाग - 3

22 अक्टूबर 2021
1
1
2

दत्ता शुभांगी को वासना भरी कुटिल निगाह से देखता हुआ कवर्ड की तरफ़ गया और वहां से शराब की एक बोतल और

4

तलाश भाग - 4

12 नवम्बर 2021
2
1
0

शुभांगी हमेशा की तरह कॉलेज में क्लास में सिर झुकाकर बैठी प्रोफेसर का इंतजार कर रही थी। आज कोई नए प्र

5

तलाश भाग - 5

29 नवम्बर 2021
2
0
0

शुभांगी को उस पूरी रात नींद नहीं आई। सारी रात ये सोचते सोचते कट गई कि उसकी मां के बुरे इरादों से बचन

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए