28 जनवरी 2015
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प्रकृति के साथ रहना || और किताबें पढने का शौक है घोर पारिवारिक हु , कभी कभी लिखना पसंद है || बनारसी हु ||D
अल्ताफ ने “तुम तो ठहरे परदेसी” गाना सन 1998 में गया था, पर गाते वक़्त शायद ही उन्हें इल्म था कि आगे चल कर ये गाना असफल और कन्फ्यूज्ड आशिकों के लिए “गीता” बराबर हो जाएगा। समय के सीमाओं से परे ये गीत गाया गया था उस दौर में जब लड़कियां लड़कों को बेल बॉटम पैंट में देख कर ही इम्प्रेस हो जाया करती थीं। पर स
तेरे बाद किसी को प्यार से न देखा हमने ! हमें इश्क़ का शौक है आवारगी का नहीं ||
तुझे याद कर लूं तो मिल जाता है सुकून दिल को, मेरे गमों का इलाज भी कितना सस्ता है…!!