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तिरंगा(कविता)"ये वतन"पुस्तक

10 जून 2016

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featured imageगर हम होते आजादी में , जाकर शत्रु से लड़ जाते फिर चाहे जो हो जाता, विजयी तिरंगा फहराते हम लिए तिरंगा आगे बढ़ते, चाहे पर्वत भी टकरा जाते लेकर शपथ निज वतन की आगे-आगे बढ़ते जाते चाहे सर कटते मेरे , चाहे होश-हवाश उड़ते जाते सच बोल रहा हूँ ये मित्रों मृत्युलोक में भी जश्न मनाते फिर चाहे जो हो भी जाता विजयी तिरंगा फहराते| हम वीर सैनिक आगे बढ़ते बरछी,भाले भी सह जाते गाकर गान अपने वतन का , इक गाथा हम लिख जाते ये सब गर हम कर पाते , तो वीर जाँबाज जवान कहाते फिर चाहे जो भी हो जाता विजयी तिरंगा फहराते||
अजीत कुमार मिश्रा

अजीत कुमार मिश्रा

aap bhut aacha likhte hai aap ka javab nhi hai

10 जून 2016

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रचनाएँ
yevatanbook
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इसे पढ़े,लाइक करें,कमेंट करें,शेयर करें| रचनाकार अवनीश कुमार मिश्रा
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वह देश है मेरा हिन्दुस्तान(कविता)"ये वतन"पुस्तक

8 जून 2016
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जहाँ हर वासी है भोला- भाला और हर वासी है वीर जवान जहाँ रग-रग में बहती आजादीसैनिक चलते सीना-तान वह देश है मेरा हिन्दुस्तान|जहाँ बहती है गंगा-सरयूसब करते उसमें स्नान जहाँ सरोवर के तट परकोयल करती कुह- कुह गानवह देश है मेरा हिन्दुस्तान||जहाँ हिन्दू,सिक्ख,इसाईं रहते और रहते हैं मुसलमानजहाँ रहते बोद्ध,पार

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वो कौन है(कविता)"ये वतन"पुस्तक

9 जून 2016
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वो कौन है जो इस कदर प्यार कर रहा है वो कौन है जो करोंड़ो की मदद कर रहा है वो कौन है जो दूसरों के लिए लड़ रहा है वो कौन है जिससे शत्रु ड़र रहा है वो कौन है जिससे वतन सँवर रहा है वो हमारे देश का सहारा है वो वतन का सितारा है वो गिरि का सहारा है वो वतन का दुलारा है वह चन्दा है,वह तारा है वह वतन का रक्ष

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तिरंगा(कविता)"ये वतन"पुस्तक

10 जून 2016
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गर हम होते आजादी में ,जाकर शत्रु से लड़ जातेफिर चाहे जो हो जाता,विजयी तिरंगा फहरातेहम लिए तिरंगा आगे बढ़ते,चाहे पर्वत भी टकरा जाते लेकर शपथ निज वतन कीआगे-आगे बढ़ते जातेचाहे सर कटते मेरे ,चाहे होश-हवाश उड़ते जातेसच बोल रहा हूँ ये मित्रोंमृत्युलोक में भी जश्न मनातेफिर चाहे जो हो भी जाता विजयी तिरंगा फ

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अपना लहू बहा देंगे(कविता)"ये वतन"पुस्तक

11 जून 2016
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वीर जवाँ हूँ इसी देश का इस देश को न झुकने देंगेंलेकर हाँथों में खड़ग ,सर काँटेंगे,कटवा भी लेंगेकट जाऐं सर फिर भी,आखिर तक लड़ते रहेंगे हम अपने वतन के खातिर,अपना लहू बहा देंगे|भारतवासी हैं हम सब जन,गैर गुलामी नहीं सहेंगे,बर्छी और भाले लेकर हम,बिना खड़ेदे नहीं रहेंगेगर नहीं खड़ेदे दुश्मन को,तो दुनिया व

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अपना लहू बहा देंगे(कविता)"ये वतन"पुस्तक

14 जून 2016
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वीर जवां हूँ इसी वतन का इस देश को न झुकने देंगे लेकर हाँथों में खड़ग ,सर काटेंगे ,कटवा भी लेंगे कट जाऐंगे सर फिर भी ,आखिर तक लड़ते रहेंगे हम अपने वतन के खातिर अपना लहू बहा देंगे|भारतवासी हैं हम सब जन गैर गुलामी नहीं सहेंगें बर्छी और भाले लेकर हम बिना खड़ेदे नहीं रहेंगें गर नहीं खड़ेदे दुश्मन

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चलो चलें इतिहास बनायें (कविता) "ये वतन" पुस्तक

8 सितम्बर 2017
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देशभक्ति कविता जरुर पढे़ं

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हम अपने भारत को सर्वश्रेष्ठ बनायेंगें (कविता) "ये वतन" पुस्तक

29 सितम्बर 2017
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