माँ सा कोई दूजा नहीं
पहली बार किसी गज़ल को पढ़कर आंसू आ गए । , शख्सियत, ए 'लख्ते-जिगर, कहला न सका । जन्नत,, के धनी "पैर,, कभी सहला न सका । . दुध, पिलाया उसने छाती से निचोड़कर, मैं 'निकम्मा, कभी 1 ग्लास पानी पिला न सका । . बुढापे का "सहारा,, हूँ 'अहसास' दिला न सका पेट पर सुलाने वाली को 'मखमल, पर सुला न सका । . वो 'भूखी,