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गुज़रा ज़माना

2 नवम्बर 2022

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गुज़रा ज़माना -  न  जाने  कितने लोगो  ने  उस गुज़रे ज़माने को याद किया होगा । अपनी कुछ धुंधली सी तस्वीरो मे चाहे वह (दुर्दशन हो या पुराने  फिल्मी गीतो मे जिसे आज भी सुनकर लोग अपना दिल बहलाते है
कुछ पल की झलक़ियों मे ही सही तथा अपनी यादो  मे महसूस किया करते है । ,आज भी कुछ दोस्तो के साथ दो कप चाये की गपशप  मे , जो पिछे छोड़ आये थे । वो बिते सुनहरे कल जिन्सें रिश्ता उन्का आज भी भरसो पुराना व गहरा है । चाहे बक्त की घड़ीयाँ हो या जेब मे लगाने वाली घड़ियाँ यह  जितनी भी पुरानी हो जाये , रहेगीं वो हमेशा उन्के लिए नयी सी, तथा चीज़े जितनी पुरानी हो जाये , रहेगीं वह नज़दीक़ ही तस्वीरे बनकर  बिते लम्हो की , कहे  जो खुशी उपहार देखने पर होती है । वैसे ही खुशी लोगो को भी होती है । कुछ पुरानी सी याद आने पर, पर वह पल लौटकर आना हमारे लिए अब न मुमक़िन है । बक्त के साथ - साथ दुनिया तो बदली पर यादे नहीं यादे तो हमेशा एक दिल के संदूको मे बदं रह गई,  उस शहर मैं जहाँ लौटकर जाना अब न मुमक़िन है । मगर उस पल की बात कुछ और ही थी । जो ख़िचती है । मुझे अपनी ही तरफ़ यह कहने को कि,  तुम जितना भी माहौल बदल लो  मैं तुमको हमेशा याद आता रहूँगा ,भले ही तुम मुझसे जितनी भी दूर रहो, मैं हर जगह रहूँगा, मे  तुम्हारा एक ऐसा दोस्त बनकर जो तुमको यह याद दिलाने को कि मैं गया नहीं, हूँ । अब भी मैं तुम्हारी नज़रो के सामने हूँ । ताकि तुमको ये न लगे की मैं अच्छा नहीं था । लेकिन गुज़र तो गया हूँ , मे बक्त के साथ - साथ मगर तुम मुझे भूला नहीं पाये, अपनी भूली - बिसरी उन यादो मे ,जिन मे तुम मेरे साथ रहे ,चाहे वह बारिशों का मौसम हो या ठंडी सी ख़िल -ख़िलाती हवा तथा आसमान के नीचे  हवाओ  मे बैठकर अपनी दादी, नानी से पारियों की कहानियाँ सुनना जो आज इस नये दौर मे ऐसा नहीं मिलता , जाने कहां गये वो दिन किस्से कहाँनियों वाले जो सुना करते थे । ओर जो सुनते थे । हर किसी से, यह एक ऐसा दोर था । जिदंगी का जो लोगो ने इसे बख़ूबी जिया है । उन पुरानी वस्तु के साथ जो काई  लोगो ने सभांल कर अब भी रख़ा है ।, जैसे - कि  पुराना रेडियो, सिक्के तथा पुरानी वो अनेक वस्तु जो हमेशा उन्हें याद दिलाती रहे ,यह था । हमारा गुज़रा ज़माना हमारे  ज़माने की तो बात ही निराली थी । एक रूपये मे हम पूरी दुनिया घुम लेते थे । आज के दौर मे दस दुकाने घुम ले  तब भी वह मज़ा नहीं आता जो गुज़रे ज़माने मे आता था । जितने भी साल गुज़र जाये, लेकिन याद तो गुज़रा ज़माना ही रहेगा, मुर्गा की बाग़ से लेकर चिड़ियो की चहक़ तक मे एक ही बात कहूँगा, कहा गये वो गुज़रे ज़माने, जिसे याद करके हम आज भी पुरानी यादो की पोठली ख़ोलकर देखते है । ओर कहते कहा गये वह गुज़रे ज़माने , वो  जिंदगी के मीठे फ़ल जिसे मे हर रोज़ चख़ते है । वो जिदंगी के कुछ सुनहरे पल 

                             समाप्त 



               लेखक - ज़ुबैर खाँन........📝



           






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