जो कभी सुखरू थे, उन्हें दीवारों पर टैंगते देखा है
वक्त कैसा भी हो, हर वक्त को बदलते देखा है
हमेशा जो चला करते हैं, आसमाँ की तरफ देखकर
गाहे-बगाहे हमने उन्हें जमीन पर फिसलते देखा है।
जरा जरा सी बात पर दम भरा करते हैं लोग
यहाँ एक जरा सी बात पर हमने दम निकलते देखा है
जिन्होंने ऊँची कर रखी थीं, अपनी दीवारें दुनिया के लिए
एक नजर-ए-इनायत पर अब उन्हें मचलते देखा है
सबने सजाया, सबने सँवारा और खूब गुमाँ भी किया
मिट्टी के शरीर को मगर मिट्टी में ही मिलते देखा है।
गिरकर सँभालना, सँभलकर चलना और फिर दौड़ पड़ना इनसानी
हौसलों के आगे हर मुसीबत को पिघलते देखा है।