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versha

वर्षा वार्ष्णेय

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पुस्तक के भाग

1

दर्द की इंतहा

2 जुलाई 2018
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(यहां न बात धर्म की है ,न किसी विशेष जाति की ।यहां तो बात है सिर्फ मासूम बच्चियों की इज्जत की ।क्यों लाते हो बीच में मजहब और राजनीति को,है हिम्मत तो दे दो “सबूत “अपने मर्द होने की)कंठ है अवरुद्ध होठों पर भी लगे हैं ताले,भुलाकर ईमान सिल गए हैं लवों के प्याले।।हार रही है मानवता घुट रही है इंसानियत ,हर

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bacche aur mata pita

28 जुलाई 2019
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जय श्री कृष्ण मित्रो ... #हक़ीक़त ये भी है कि आज बच्चों के माता पिता बने रहने की बजाय उनके मित्र बनने की कोशिश करें ।अपनी मनमर्जी थोपने की बजाय उनकी खुशियों पर भी ध्यान दें तभी समाज को विकृति से बचाया जा सकता है ।बच्चों के साथ बैठना ,उन्हें सही संस्कार देना और घरों मे

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