प्राण प्रिय को समर्पित......
प्राण तुम बिन निकलते नहीं देह से
और तुम बिन न संभव मेरा जीवन..
बिन तुम्हारे गुजारे हैं सावन कई
आँसुओं से रहे भीगे दोनों नयन..
प्राण तुम बिन....
तन की तो दशा है बिगड़ी हुई
पर मन को मिलन की आशा है
तुझसे ही जुड़ी हर इच्छा मेरी
तू जीवन की महती पिपासा है
दिन गुजरते नहीं,चली आओ तुम
दर्द होता नहीं है, जरा भी सहन....
प्राण तुम बिन......
साथ देना न था तुमको तो फिर
बता दो सहारा मेरा क्यूँ बनी
विरहाजहर तन में घुलने लगा
तुम ही हो बस मेरी संजीवनी
भर दो साँसों में आके रवानी प्रये
या देदो मुझे आजीवन सयन....
प्राण तुम बिन निकलते नहीं देह से
और तुम बिन न संभव मेरा जीवन
इन्द्र आगरावासी
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