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वक्‍त

15 अप्रैल 2015

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” वक़्त नहीं ” हर ख़ुशी है लोंगों के दामन में , पर एक हंसी के लिये वक़्त नहीं . दिन रात दौड़ती दुनिया में , ज़िन्दगी के लिये ही वक़्त नहीं . सारे रिश्तों को तो हम मार चुके, अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं .. सारे नाम मोबाइल में हैं , पर दोस्ती के लिये वक़्त नहीं . गैरों की क्या बात करें , जब अपनों के लिये ही वक़्त नहीं . आखों में है नींद भरी , पर सोने का वक़्त नहीं . दिल है ग़मो से भरा हुआ , पर रोने का भी वक़्त नहीं . पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े, की थकने का भी वक़्त नहीं . पराये एहसानों की क्या कद्र करें , जब अपने सपनों के लिये ही वक़्त नहीं तू ही बता ऐ ज़िन्दगी , इस ज़िन्दगी का क्या होगा, की हर पल मरने वालों को , जीने के लिये भी वक़्त नहीं …….

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