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वो सर्द रात- 3

19 मई 2023

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" जल्दी करा हो... जल्दी करा," मेरे नज़दीक पहुंचते ही फैक्ट्री में मौजूद चोरों के दल में से एक ने अपने साथियों को निर्देश देते हुए कहा , उन्हें मेरी मौजूदगी का अहसास बिलकुल भी नहीं था ... जल्द ही मैं फैक्ट्री के मेन गेट के एरिया से होते हुए उन चोरों के दल के निकट पहुंच चुका था, फैक्ट्री का वो एरिया बेर के ऊंचे कटीले झाड़ों से लैस था और उस सर्द कोहरे की रात में अगर मुझे उस इलाक़े की जानकारी न होती तो मैं कब का उन्हीं के बीच उलझ कर रह गया होता। 

" क्या मेरा इन पर अभी हमला करना सही रहेगा... या थोड़ा और इंतजार करूं, क्यूंकि ये तीन लोग हैं और खुदाई के औजार के साथ... ख़तरा मेरे लिए भी उतना ही है, पर मुझे कुछ तो करना ही पड़ेगा, वर्ना बहुत देर हो जायेगी," मैंने उन चोरों के पीछे स्थित ऊंचे जंगली बेर के झाड़ की आड़ में खड़े होकर ख़ुद से बातें करते हुए कहा। वे तीनों स्टोर में सेंध कर सीमेंट की बोरियां और कीमती उपकरणों को चुराने की तैयारी में थे। 

"धप ss धप ss धप ss धप ss धप... धाप ss धपss धप ss धप ss धप ss धप ss धप," तभी अचानक फैक्ट्री की सीध और हमारी दाईं ओर से एक नौजवान उन तक भागते हुए पहुंचता है तथा निर्देश दे रहे एक चोर को अपने साथ वापस लेकर चला जाता है... मुझे समझते देर नहीं लगती है कि आज रात उन चोरों के दल ने पड़ोसी फैक्ट्री विद्युत पारेषण खण्ड की दीवार में सेंध कर अन्दर प्रवेश करने का भी मन बनाया है, क्यूंकि दीवार के दूसरी तरफ बाहर ही ज़िंक से बने कीमती उपकरणों को सूखने के लिए रखा जाता है... वो आदमी अपने साथियों के नज़दीक पहुंच कर उनमें से एक को अपने साथ लेकर वापस पारेषण खण्ड की दीवार के पास पहुंच जाता है, अब हमारे फैक्ट्री के बडे़ स्टोर के पास महज दो चोर ही सेंध लगा रहे थे, जो मुझसे पूरी तरह से अनजान थे...

" अब भी रौशनी होने में चार घण्टे लगेंगे... मुझे इन्हें किसी भी तरह रोकना ही पड़ेगा, यही सही समय है इन पर पीछे से हमला करने का क्यूंकि इनके साथी सामने पारेषण खण्ड की दीवार के नज़दीक हैं और उन्हें वहां से भागते हुए अाने में समय लगेगा क्यूंकि जंगली कटीले झाड़ भी मौजूद हैं, जो उनके लिए अवरोधक का काम करेंगे ... तब तक मैं इन्हें निपटा कर छुप जाऊंगा," मैंने मौके का फ़ायदा उठाने का सोच ख़ुद से बातें करते हुए कहा... दहशत मेरे अन्दर भी उतनी ही थी जितना मेरा सामना करते हुए उन चोरों के दल को होनी थी, पर मेरे लिए ये करो या मरो वाली परिस्थिति थी, जिससे मैं चाह कर भी मुंह नहीं मोड़ सकता था... मैंने अब उस बेर की झाड़ के पीछे से उन तक पहुंचने का मन बना लिया था और झाड़ को पार करने के लिए अपने कदमों को आगे बढ़ा दिया था।

" ठाक.. ठ ss नss न ss न ss न... ठाक," जैसे ही जैसे मैं उनके निकट पहुंच रहा था , लोहे के खंती की आवाज़ तेज़ होती जा रही थी... घने कोहरे के कारण मुझे थोड़ा समय लगा उन तक पहुंचने में, पर सावधानी बरतते हुए मैं घूमकर उन और अधिक नज़दीक पहुंच गया था... मैंने इस बात का पूरा ध्यान रखा था कि उन्हें मेरी मौजूदगी का अहसास बिलकुल भी नहीं हो और घने कोहरे ने इसमें मेरी भरपूर मदद की थी... अब मैं उन दोनों चोरों के काफ़ी नज़दीक पहुंच गया था जो स्टोर में सेंध कर रहे थे...

" अब मैं उनसे बस कुछ ही दूरी पर हूं और उन पर हमला करने के लिए ये जगह बिलकुल सही है, क्यूंकि यहां से बस कुछ ही दूरी पर स्थित एक जंगली पेड़ की डाल पर मेरे दोनों नान चाकू भी मौजूद हैं... अगर कुल्हाड़ी को नुक़सान पहुंचता है तो मैं नान चाकू का इस्तेमाल कर लूंगा... पर अब इन्हें अपनी मौजूदगी का अहसास करवाना ज़रूरी है," मैंने ख़ुद में विचार करते हुए अपने आप से बातें की और फिर उन पर हमला करने के इरादे से आगे बढ़ गया। 

" भ ss ड़ा ss क... ओ ss हss आ," मैंने उन दोनों चोरों में से एक के जो अगले के पीछे मौजूद था, उसके सिर पर कुल्हाड़ी के पिछले सिरे से ज़ोरदार प्रहार किया और उसके साथी ही उसकी दर्द भरी पुकार भी निकली तथा वो ज़मीन पर गिर पड़ा असहनीय पीड़ा के कारण... मेरे तेज़ प्रहार और उस चोर की दर्दनाक आह अगले वाले के कानो तक पहुंचती है, जो स्टोर में सेंध करने में व्यस्त था... वो सतर्क हो कर खड़ा हो जाता है तथा मेरा मुक़ाबला करने के लिए आगे बढ़ता है, उसके हाथों में लोहे की मोटी खंती थी जिसका प्रयोग वो स्टोर में सेंध मारने के लिए कर रहा था... वो खंती को अपने सिर के ऊपर उठा लेता है दोनों हाथों का इस्तेमाल करके, जिसे देख मुझे ये समझने में देर नहीं लगती है कि वो सीधा मेरे सिर को निशाना बनाने का प्रयास करने वाला है...

" ख ss ना ss क... ख ss ट," वो खंती का इस्तेमाल कर ज़ोरदार वार करता है और मैं अपनी दाईं तरफ फुर्ती से झुक कर अपना बचाव कर लेता हूं जिसके फलस्वरूप उसकी मोटी खंती बाईं ओर स्थित बेर के झाड़ से टकरा कर ज़मीन पर पड़ती है... उसने अपनी पूरी शक्ति के साथ ही प्रहार किया था और इसका अंदाज़ा उस खंती के बेर के पेड़ से टकराने की आवाज़ से ही हो रहा था... एक ज़ोरदार प्रहार करने से वो थोड़ा असंतुलित हो गया, जिसका लाभ उठाते हुए मैंने फ़िर से एक बार कुल्हाड़ी के पिछले सिरे से जो हथौड़ा नुमा था " भ ss ड़ा ss क... उ ss ह,"सीधा उसके मुंह पर दे मारा और एक शक्तिशाली प्रहार की आवाज़ के साथ ही उसकी दबी हुई आह भी निकल गई... तेज़ पीड़ा के कारण वो असंतुलित हो गया और लड़खड़ा कर ज़मीन पर गिर पड़ा, पर ज़्यादा देर के लिए नहीं... उसने अपनी खंती का एक बार फ़िर से इस्तेमाल किया और अपने एक हाथ का इस्तेमाल करते हुए मेरी टांगो पर वार करने के लिए घुमाया... मैंने खंती के ऊपर से छलांग लगा दी और उसका दूसरा वार भी बेअसर साबित हो गया... फ़िर भी हार न मानते हुए वो तेज़ी से फुर्ती के साथ अपने पैरों पर फ़िर से संभलकर खड़ा हो गया और खंती को अपने हाथों में लेकर मेरा मुक़ाबला करने के लिए बिलकुल तैयार था...
TO BE CONTINUED...
©IVANMAXIMUSEDWIN.


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रचनाएँ
दहशत की रात...
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आज मैं आपको एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी सुनाने जा रहा हूं... एक ऐसी घटना जो किसी भी आम इन्सान के साथ घटित हो तो उसे पूरी तरह से दहशत से भर देती है... ऐसी ही एक घटना मेरे साथ घटित हुई थी जब मैं अपनी सरकारी नौकरी कर रहा था, ये घटना नैनी इलाहाबाद (प्रयागराज) की है जहां पर मेरा पोल मैन्युफैक्चरिंग सब डिविजन ऑफिस है ... मेरा सब डिविजन एक ऐसी जगह है जहां पर दिन भर तो सब कुछ ठीक ठाक चलता है लेकिन जैसे ही जैसे रात होने लगती है , डर लगने लगता है... एक अनजान डर ,जो किसी भी आम इन्सान को रात भर चैन से सोने नहीं देता है...
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भूखे लकड़बग्घे...

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" फुस्स ss फुस्स ss स ss स... फुस्स ss स ss स... फुस्स ss स ss स ss स," आखिरकार फुसफुसा कर नाग देवता मेरे बाएं कंधे से मुझे सूंघते हुए नीचे उतर ही रहे थे मेरे पैरों से होते हुए की तभी अचानक..." कोनो ब

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" सुबह के ढाई बज रहे हैं और रौशनी होने में भी अभी काफ़ी समय है... मुझे कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा वर्ना एेसे छुप कर कभी भी पकड़ा जा सकता हूं... चलो कम से कम पांच मिनट तक तमाशा देखता हूं उसके बाद निकल कर

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वो सर्द रात- 9

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अगर अवैध बिजली कटौती न करवाई गई होती ऑक्टोबर 2005 को मेरी तनख्वाह से, तो अब तक मैं चन्दौली जिले में स्थित व्यास नगर कॉलोनी में विभागीय आवास ले चुका होता, क्यूंकि मेरा सब डिविजन ऑफिस वहीं पर स्थित था..

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मैं कंस्ट्रक्शन साइट के नज़दीक स्थित 9.0 मी पोल के क्योरिग टैंक की आड़ में जा छुपा था... पीठ में घुसे बेर की डाल के कारण असहनीय पीड़ा उठ रही थी , मुझे किसी भी हालत में उस मोटी डाल के टुकड़े को अपनी पी

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वो सर्द रात- 11

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अपने स्वेटर की आस्तीनो को ऊपर कर मैं अपने दाएं हाथ में कुल्हाड़ी पकड़े, जिसकी धार पर उन चोरों के लीडर की गर्दन टिकी थी तथा अपने बाएं हाथ से उसे गर्दन से दबोचे हुए , मैं मेन गेट की दिशा में बढ़ रहा था

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" ई ससुरा के अच्छे से सबक सिखाई के पड़ी ... कस के पकड़ा हो शम्भु, आज ई के पता चली कि हम पचे से टकराए का अंजाम का होवत हई," उन चोरों के लीडर ने अपने साथी को आदेश देते हुए कहा। " जाए द... ज्यादा बक

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वो सर्द रात- 13

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" आ ss ह... कुछ भी हो मुझे अपने हाथों से बह रहे ख़ून को किसी भी हालत में रोकना पड़ेगा... बहुत गहरा घाव कर दिया है , सर्दी के कारण चोट लगने पर और भी अधिक दर्द होता है , हथेली तो बिलकुल चिपचिपी पड़ चुकी

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वो सर्द रात- 14

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" सन न न न... स ss टा ss क... आ ss ह," घने कोहरे का फ़ायदा उठा कर मैंने एक और चोर को अपना शिकार बनाया, नान चाकू को तेज़ी से घुमाते हुए कोहरे के बादलों को काटते हुए सीधा उस चोर की खोपड़ी पर प्रहार किया

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" देख ला... हम पचे पहले ही कहत रहे कि चला ईहां से... का मतबल हुआ रुके का... पर तोहार समझ में नईखे आवत बाटे, अभिनों हमरी बात माना और इहां से निकल चला... नहीं तो ऊ ससुरा किसी को न छोड़ी," अपने साथी को म

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जुगाड़- 2

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जुगाड़ फेल ख़त्म खेल...

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