" सुबह के ढाई बज रहे हैं और रौशनी होने में भी अभी काफ़ी समय है... मुझे कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा वर्ना एेसे छुप कर कभी भी पकड़ा जा सकता हूं... चलो कम से कम पांच मिनट तक तमाशा देखता हूं उसके बाद निकल कर एक एक करके धोया जायेगा," मैंने अपने मन में विचार करते हुए ख़ुद से कहा और एक ऊंचे वृक्ष की डाल पर बैठ कर उनका तमाशा देख रहा था , दरसअल मैं उन्हें जंगल के क्षेत्रों में प्रवेश करने का अवसर दे रहा था, क्यूंकि एक साथ उनका मुकाबला करना खतरनाक हो सकता था... वे क्योरिंग टैंक के पास के क्षेत्रों में मुझे तलाश कर रहे थे... जल्द ही वे स्टोर के शटर तक पहुंच जाते हैं, उसके नज़दीक प्राइवेट गार्ड के क्वार्टर में तलाश करते हैं , जिसकी चाभी जूनियर इंजीनियर के पास ही रहती थी, क्यूंकि वो कमरा वे किचन के तौर पर इस्तेमाल करते थे जहां बैठने की भी व्यवस्था थी... एक छोटी कैंटीन कहा जा सकता है... चौबीसों घण्टे बिजली उपलब्ध रहने की वजह से कुकिंग हीटर और लकड़ियां उपलब्ध रहने की वजह से अंगीठी मौजूद थी... जिसका फायदा मैंने बहुत उठाया, लकड़ियों पर पके कबाब और मटन या चिकन की बात ही कुछ और है... मैं वहां कबाब और मटन बनाया करता था, कई बार तंदूरी रोटी, सटफ नान , फ्रेश पाव और अंडे की भुर्जी भी बनाया है, अमूल बटर मार के ... मैं अक्सर मटन या चिकन का अख़नी पुलाव बना कर वहां पार्टी किया करता था और ठेकेदारों के स्टाफ्स को भी निमंत्रण दे दिया करता था ... मुझे शिकारियों के द्वारा सिखाया गया साल्टेड मीट भी बनाना आता है जिसके लिए वहां की लकड़ियां और रोज मेरी बहुत काम आती है, इलाहाबाद प्रयागराज, के चौक बाज़ार में सब कुछ उपलब्ध है , मसालों की कोई कमी नहीं है , जो चाहो वो मिल जाता है...
ख़ैर अच्छी यादें तो बहुत हैं पर उस रात ये सभी बीती यादें बन सकती थीं क्यूंकि उन अवैध घुसपैठियों का दल अब जंगल के करीब पहुंच गया था और वहीं पर स्थित पोल पर 200 वॉट के बल्ब की रोशनी में एक साया मुझे नज़र आया, उसके कुछ देर वहां उसके अकेले खड़े रहने के बाद , उसका एक दूसरा साथी भी पहुंच जाता है ... हल्के कोहरे में उन दोनों की परछाईं रौशनी के कारण ज़्यादा भयावह लग रहीं थीं... जल्द ही उसके सारे साथी पोल के नीचे इकट्ठा हो जाते हैं और आपस में बातें करते हैं,
" इहां से हमनी सब बंट जाब... जंगल में घुसे का बा , तो तनिक होशियार रही, सांप बिच्छू भी हो सकत हैं... जल्दी से ढूंढा और काम काम ख़त्म करा, याद रखा आज ऊ सिक्युरिटी गार्ड बचे के न चाही," चोरों के सरदार ने अपने साथियों को निर्देश देते हुए कहा।
" ऊ कौनो सिक्युरिटी गार्ड नईखे बा... हम पता कईले बानी, ऊ कौनों फिरंगी बा, इक दम जोकर आदमी बा, लेकिन हीरो बनके घुमत बाटे... ऊ की जोरू भी कभी कभार आवत बाटे... पन ई बात केहू के पता न रहली की ऊ पगला दिखे वाला आदमी इतना सब कुछ कर सकेला," उन चोरों के सरदार को जानकारी देते हुए उन्ही के आदमियों में से एक ने कहा।
" जो भी हो... जब हमनी सब से टकरा गइलन बाटे तो सजा भोगे के पड़ी... तू लोग दाईं ओर जाकर देखा और कलुआ तू बीच में देखा, हम और शंभू बाईं ओर देखत हई... ऊ सिक्योरिटी गार्ड जहां भी मिले ऊ के धर के पीटा लोगन, सारा हीरो गिरी का भूत निकल जाई ससुरा के," चोरों के सरदार ने अपने साथी की बातों को सुनकर अपनी प्रतिक्रिया दिखाते हुए कहा।
" पीं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं... पी ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं," तभी अचानक ई एम सी में राउंड लगाते सिक्युरिटी गार्ड के व्हिस्ल की आवाज़ उस सर्द रात की ख़ामोशी का सीना चीरते हुए चारों ओर गूंज उठती है और सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित है...
" लागत बाटे कि बगल की फैक्ट्री का सिक्युरिटी गार्ड अपनी छावनी तक वापस आवत हई... इससे पहले की ऊ अपनी छावनी तक पहुंचे , ऊ ससुरा हीरो का जना मिले के चाही, ई बात याद रखा लोगन," चोरों के सरदार ने अपने साथियों को निर्देश देते हुए कहा और फिर सभी अलग अलग हो कर जंगल में प्रवेश करने लगते हैं।
" लगता है कि वो सिक्युरिटी गार्ड काफ़ी नज़दीक पहुंच गया है, तभी व्हिस्टल की आवाज़ इतनी साफ़ सुनाई पड़ रही थी चलो अच्छा है ... उसके उसकी छावनी पर पहुंचते ही मैं सहायता की पुकार लगा सकता हूं... पता नहीं आगे क्या होने वाला है , पर जो भी हो मुझे इनका मुकाबला करना पड़ेगा... फिलहाल तो पहले इन्हें जंगल में पूरी तरह से प्रवेश तो कर जाने दो ," पेड़ पर बैठा हुआ मैं ई. एम. सी के सिक्युरिटी गार्ड की व्हिस्टल को सुनकर ख़ुद से बातें करते हुए अपने मन में कहता हूं... चोरों का दल जंगल में प्रवेश कर ही चुका था और अब ऊंचे बेरों के झाड़ों के इलाकों को पार करना था , तभी जंगल के बीच में पहुँचा जा सकता था , जहां शीशम, बरगद , जंगली नीम इत्यादी जैसे कुछ और भी ऊंचे वृक्ष मौजूद थे...
चोरों का दल बंटकर मेरी तलाश कर रहा था और हर हालत में मुझे ढूंढ कर सबक सिखाने की फ़िराक में था , मैं भी एक ऊंचे वृक्ष की डाल पर चढ़कर आस पास के इलाकों पर नज़र रखे हुए था कि तभी अचानक कुछ ऐसा होता है जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी... अब इसे इत्तेफ़ाक़ कहें या क़िस्मत कि उस रात अचानक ही मौसम ने अपना रुख़ बदल दिया और जहां कोहरे के बादल हल्के हो चले थे, वहीं पर एक बार फ़िर से उन्होंने अपना वर्चस्व जमा लिया था और सब कुछ अपनी आगोश में ले लिया था... आस पास का कुछ भी ठीक तरह से देख पाने में एक बार फ़िर से असुविधा हो रही थी... पर उस रात नैनी पोल फैक्ट्री में कुछ एेसे लोग मौजूद थे , जो इन सभी बातों की परवाह किए बगैर अपने कर्मो के चकरव्यूह में फंसे हुए थे और उसी के आधार पर चल रहे थे, एक ओर वे चोर थे जो चोरी करने आए थे और मेरी वजह से उनके लिए रुकावट पैदा हुई और दूसरी ओर था मैं जो अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपना फ़र्ज़ निभा रहा था।
TO BE CONTINUED...
©IVANMAXIMUSEDWIN.