नमोऽस्तुगुरुसत्तायैमातृवत्लालयित्री च, पितृवत् मार्गदर्शिका,नमोऽस्तुगुरुसत्तायै, श्रद्धाप्रज्ञायुता च या ||वास्तवमें ऐसी श्रद्धा और प्रज्ञा से युत होती है गुरु की सत्ता – गुरु की प्रकृति – जोमाता के समान ममत्व का भाव रखती है तो पिता के समान उचित मार्गदर्शन भी करती है… औरसच पूछिये तो मित्र के समान हर