प्लेटफार्म मन ही मन सोचता है मेर जीवन भी क्या जीवन है। हर आती जाती रेल मुझे कोसती है। किसका सगा हूँ ये प्रश्न पूछती है। रेलों का शोर है, हजारों की भीड़ है लेकिन मन में सन्नाटा क्यों है? बाहर इतनी रौनक,लेकिन मन में ये चुभता सा कौन है? रेल तो जीवन भर मुझ तक आएगी मुझसे कभी वो कुछ नहीं पायेग