नीलिमा अचेत अवस्था में ,बिस्तर पर पड़ी थी ,तीनों दरिंदे उसके तन को ललचाई नजरों से घूर रहे थे ,आज वो कुछ भी कह ,सुन नहीं पा रही है ,उसे तो ये भी नहीं पता- कि उसके साथ क्या होने जा रहा है ?किन्तु सभ्य समाज के कुछ लोगों का, असली चेहरा अवश्य नजर आ रहा है। मानवता की शक्ल में कुछ सभ्य दरिंदे ,आज अपने असली रूप में आ ही गए थे । उन्हें न ही तीन बच्चों की माँ से या फिर अपने दोस्त की विधवा से कोई मतलब था ,उनकी इंसानियत तो जैसे मर चुकी थी, जो सहायता की आड़ में अपनी दरिंदगी का खेल खेलने जा रहे हैं। यार.... धीरेन्द्र भी न.... इसकी क़द्र न कर सका ,ये तो हीरा है हीरा..... इसकी तन की चमक से मेरा दिल उछल रहा है, टीना के चक्कर में इसे धोखा देता रहा ,इस बेचारी को तो पता ही नहीं चला। उसने इसे धोखा दिया जो इसका पति था ,तब हम तो इसके अपने भी नहीं ,हमने इसे धोखा भी दिया तो कोई ग़म नहीं ,बेचारी! कितने दिनों से प्यार से लिए, तड़प रही होगी ?आज इसे हम अपने प्रेम से सराबोर कर देंगे, कहते हुए तपन आगे बढ़ा।
हमने भी इसे कहाँ धोखा दिया ? हम तो इसकी सहायता कर रहे हैं ,तब बदले में ,हमारी बरसों की प्यास पूर्ण होगी, तो इसमें क्या बुराई है ?कहकर सुरेंद्र बोला -पहले मेरा अधिकार है ,मैंने ही तो इसे सहायता के लिए बुलाया है। तुम दोनों बाहर जाओ ?
चलो भई ! योजना तो इसकी ही थी ,चलो ,पहले इसे मजे लूटने दो !कहकर दोनों बाहर आ गए।
आज इंसानियत रो रही थी ,संघर्षशील इस विधवा माँ की अस्मत तार -तार हो रही थी। जब उसे पता चलेगा ,तब क्या आसमान फटेगा या फिर बिजली कड़केगी या फिर मानवता जाऱ -जार रोयेगी। तीनों ही बारी -बा री आते हैं। उसके बाद उस बिस्तर पर सौ -सौ के नोटों की तीन गड्डियां उसके पास फ़ेंककर चले जाते हैं। नीलिमा को जब होश आता है ,तब अपने को निर्वस्त्र देखकर सिकुड़ जाती है और अपने कपड़े ढूँढती है। वो वहीं बिस्तर पर पड़े थे। तब उसने उन्हें पहना ,उसे कपड़े पहनते हुए सर घुमा सा लग रहा था। तब उसे सभी बातें स्मरण हो आईं ,अपने बराबर में हो नोटों की तीन गड्डी देखकर ,वो समझ गयी। ये उन्होंने उसके शरीर की कीमत लगाई है ,उन्हें देखकर वो फ़फ़क -फफककर रो दी। मन में आया कि इन्हें ले जाकर उनके मुँह पर ये पैसे दे मारूं, किन्तु इससे अब कोई लाभ नहीं ,जो होना था हो गया ,उस समय को वापस तो नहीं लौटाया जा सकता। ये मेरे बच्चियों की फ़ीस है ,जो आज उनकी माँ ने अपनी अस्मत से चुकाई है। उसने पैसे उठाये और ये देखने के लिए बाहर आई ,कि सुरेंद्र से पूछूं तो जरा..... उसने मेरे साथ ऐसा विश्वासघात क्यों किया ?
बाहर कोई नहीं था ,चोर क्या चोरी करने के पश्चात वहीं रहेगा ? यही सोच वो बाहर आ गयी ,घड़ी में समय देखा तो रात्रि के तीन बजे थे ,वो उस घर से बाहर आई और कोई रिक्शा ढूँढने लगी। तभी उसे एक रिक्शा दिखा भइया ! चलोगे।
नहीं जी ,ये सोने का समय है ,नीलिमा आगे बढ़ी ,एक रिक्शेवाले से और पूछा। वो उठा ,नीलिमा ने देखा ये तो वही है। नीलिमा उसे देखकर ,नजरें चुराने लगी।
जी, चलूँगा न......
नीलिमा बिना कुछ कहे ,उसके रिक्शे में बैठ गयी।
मैडम !एक बात कहूं।
नीलिमा ने अपनी आँखों से गालों पर लुढ़क आये आंसूं पूंछते हुए ,कहा -पूछो !
यहाँ आपके कौन जाननेवाले रहते हैं ?
मेरे पति के दोस्त रहते हैं ,शायद अभी नया मकान लिया होगा।
यहाँ मकान कोई नहीं खरीदता ,एक रात्रि के लिए किराये पर ले लेते हैं।
क्या ,ये सारा मोेहल्ला ही ऐसा है ?
मोेहल्ला इतना बड़ा ही कहाँ हैं ? छोटी सी गली है ,इसमें आठ -दस घर होंगे।
क्या तुम इसके विषय में जानते थे ?
जी ,तभी तो आपसे पूछ रहा था, कि आपका कौन रहता है ?
तुम ये बात मुझे पहले नहीं बता सकते थे ? नीलिमा लगभग उस पर नाराज होते हुए बोली।
मुझे मैडम जी !आप अच्छे परिवार की लगीं ,तभी पूछ बैठा ,वरना लोग तो कुछ भी कहने -सुनने से डांट देते हैं। तुम अपने काम से काम रखो !इसीलिए हम लोग सब कुछ देख -सुनकर भी ,अंधे -बहरे बने रहते हैं और अपने काम से काम रखते हैं।
नीलिमा आँखों में अश्रु भरकर बोली ,तुम मुझसे तो कहकर देखते ,कहकर उसने अपने आंसू पोंछे। वो चुपचाप शीशे में से ,उसके ग़म को बहते हुए देख रहा था और महसूस कर रहा था ,कोई बेचारी अनजाने में ही फँस गयी। घर के करीब आकर वो उतरी ,उसने दूसरी ताली से ताला खोला और चुपचाप बिना आहट किये ,अंदर आकर अपने कमरे में गयी और अपने बिस्तर पर लुढ़ककर रोने लगी ,बहुत देर तक रोती रही ,न जाने उन दरिंदों ने मेरे साथ क्या किया होगा ?अपने तन के वो निशान देखकर उसे घृणा हो रही थी ,जो उसकी जांघों और गर्दन पर पड़े थे। मम्मी को किसी भी बात की भनक न लगे ,यही सोचकर अपने मन में उठ रहे, तूफान को दबाया हुआ था। अपने बच्चों के लिए भी तो उसे सम्भलना होगा। मैं तो एक विधवा तीन बच्चों की माँ को ,इस समाज के सभ्य कहलाये जाने वाले लोगों ने नहीं छोड़ा, तब तो ऐसे समाज में मेरी बेटियां भी असुरक्षित ही है ,शायद इसी असुरक्षा की भावना के चलते ,लोग बेटियों का पैदा होना पसंद नहीं करते किन्तु अपनी इस कुंठित मानसिकता के चलते, वो ये नहीं सोचते ,जिसके शरीर से वो बाहर आये हैं ,वो भी तो किसी की बेटी थी। बेटी होती है ,तभी तो वो माँ बनती है , जिससे तुम जैसे ''नराधम ''पैदा हुए हो।
गैर की स्त्री तो जैसे ,सड़क की धूल है ,इन्होंने तो दोस्ती का भी मान नहीं रखा। ये लोग तो मुझे पहले से ही पसंद नहीं थे किन्तु धीरेन्द्र के कारण कभी कुछ नहीं कहा ,धीरेन्द्र भी तो कम नहीं था ,इन लोगों के साथ रहकर ही ,इनके जैसा रहा होगा। शराब तो पीता ही था ,ऐसा भी कुछ किया हो तो...... मैं इतना सब कहाँ सोच सकती थी ? वो भी तो कम नहीं था ,जब तक मुझे भी ज्ञान नहीं था ,तब लगता था, पति -पत्नी का रिश्ता ऐसा ही होता है। अब लगता है ,उसे भी तो ,मेरे तन से ही मतलब था ,कभी मुझसे पूछा या जानना नहीं चाहा कि मेरी भी कोई इच्छा -अनिच्छा है या नहीं ,बस अपनी इच्छाएं मुझ पर थोपता रहता था। उसका मन धीरेन्द्र के प्रति भी घृणा से भर गया। अपने पिता को भी तो, मैंने ऐसे ही देखा था माँ सदैव उनके आगे -पीछे डोलती रहती थी , पता नहीं ,मम्मी की भी कभी कोई इच्छा पूर्ण हुई या नहीं। मुझे नहीं लगता, कभी पापा ने भी मम्मी की इच्छा जानने का प्रयास किया हो ,इच्छा तो दूर ,मुझे तो नहीं लगता ,उनके मन में ,मेरी माँ के प्रति सम्मान कभी भी रहा हो। सोचते -सोचते ,नीलिमा को न जाने कब नींद आ गयी ?
सुबह पार्वती जी उठीं और उठते ही ,सबसे पहले अपनी बेटी के कमरे में गयीं ,देखा तो ,नीलिमा अपने बिस्तर पर औंधी पड़ी सो रही है। पता नहीं, कब आई होगी ?सोचकर वो अपने दैनिक कार्यों में लग गयीं। उसकी बेटियों को उठाया और उन्हें तैयार किया ,नीलिमा की बेटियों ने अपनी मम्मा के विषय में पूछा भी ,जब उनकी नानी ने बताया कि वो अंदर सो रही है।
तब दोनों एक बार जाकर अपनी माँ को सोते हुए देखकर आईं ,और बोलीं -आज मम्मा स्वयं इतनी देर से सो रही हैं। नानीजी अब हम चलते हैं ,कहकर चलीं गयीं ,तब पार्वती जी ने घड़ी में समय देखा और नीलिमा को उठाने का प्रयत्न किया।
नीलिमा उठ जा ! कितनी देर से सो रही है ?आज तुझे स्कूल पढ़ाने नहीं जाना।
अपनी मम्मी की आवाज सुनकर नीलिमा जैसे -डरावने सपनों की दुनिया से बाहर हकीकत में आई और सीधे किसी को फोन करने लगी -हैलो !
हैलो , मेेम !आज मैं थोड़ा देरी से आऊँगी ,आज मुझे अपनी बेटियों की फीस जमा करने के लिए ,उनके स्कूल जाना है ,कहकर वो नहाने चली गयी। वो अपनी मम्मी से नजरें चुरा रही थी , कहीं उन्हें किसी भी तरह का कोई शक़ न हो जाये। बाहर आकर उसने नाश्ता किया ,आज उसने बंद गले का सूट पहना है।
क्या नीलिमा की मम्मी को पता चल जायेगा कि नीलिमा रात भर कहाँ थी? बेटियों का शुल्क कैसे जमा किया? पढ़ते रहिये - ऐसी भी ज़िंदगी।