बचपन कैसे गुज़रता है पता नहीं चलता लेकिन ताउम्र बचपन की यादें हमारे ज़हन में जिन्दा रहती हैं |
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खिलखिलाती सी एक उम्र को जी लिया एक मुस्कराहट से हर गम को पी लिया ऊँगली थाम के अब कोई चलाता नहीं यह बचपन फिर लौट कर आता नहीं न भूख की चिंता थी और न थी कल की फ़िक्र हर बात पे हसते थे जिस बात का होता जिक्
आंखों की पलकों को जब नींद सताती थी वो लेके गोद मेँ अपनी मुझपे स्नेह जताती थी अपने आँचल से ढककर अब कौन सुलता है वो खिलखिलाता बचपन मुझको फिर बुलाता है नन्हें कदमों से उठकर चलने की ख्वाहिश थी
चाह नहीं भारी शब्दों कोअपनी पहचान बनाऊँसीधी साधी भाषा सेअपने मन के भाव बताऊँलाख खयालों का समन्दरमेरे दिल में रहता हैमैं एक सरल कवि हुं जोमनमस्त कविता कहता हैकागज की धरती पर मैनेशब्दों की दुनिया बसाई&n
हवाओं के संग उड़ना है जीवन की मुश्किलों से लड़ना है मेरी पंख के बिना मै कुछ भी नहीं भरूँ उड़ान उड़ जाऊं मै दूर कहीं मैं उड़ता हूँ हर दिन, हर पल कुछ नया सीखता हूँ , कुछ सीखने की चाहत में मेहनत
आंख थी शैतानी सी करती थी मनमानी सी घर के खुले द्वार में रास्ता है तक्क रही | दबी दबी सी चाल है चोर जैसी ढाल है गुड़ की डाली हाथ में सांस सी अटक रही | कोशिशें हज़ार है जाना घर से भार है यार
दिल के कोने में छुपी हुई हैं वो यादें, जिन्हें भूलने का नहीं होता है इंतजार। उन दिनों की सुनहरी यादों के साथ, बचपन में खुशियों की लगी हो कतार । माँ के हाथों की बनी रोटी की खुशबू, बचपन की वो लोर