वो देख के मुस्कुराया लगा मैं शहबाज़ शायद
तभी तो रहने लगा मैं खुश-मिजाज शायद
(शहबाज़- नौजवान)
मुझे यकीन हो चला मेरी पहली मोहब्बत पर
मुझे लगा वो बन जाएगा मेरा मुमताज़ शायद
हो चला था सब कुछ हसीन दुनिया की भीड़ में
ना था किसी चीज का मुझे ऐतराज शायद
फिर छोटी मोटी गफलत में उसे हो गई नफरत
मेरे गुस्ताख दिल से वो हो गया नाराज शायद
अब आता नहीं नजर बदल लिया वो रास्ता
कर रहा दूर जाने का वो अब आगाज शायद
नहीं दे रहा मौका वो माफी मांगने का भी
मुझ तक ना पहुंचे वो अब आवाज शायद
अच्छा था मेरा ख्याल पर लफ़्ज़ साथ नहीं थे
वक्त है अब बदलने का अपना अंदाज शायद
शायद वो हकीकत को फसाना कर के मानेगा
फिर मेरी रूह पुकारेगी मुझे धोखेबाज शायद