मात्रा भार-17, “गज़ल” जिंदगी चलन खुद बसर पर है इस शहर का जतन हुनर पर है रुक खड़े हो जहां बिन दस्तकी मन दर्पण अब किस डगर पर हैं॥ सोच के रखते कदम ताल में बढ़ते न बहम पल पहर पर हैं॥ खबर यह अब मिरे सन्मुख हुई मिलता कारवां इस नगर पर हैं॥ गर भनक लग जाती मुझे तनिक