मात्रा भार-17,
“गज़ल”
जिंदगी चलन खुद बसर पर है
इस शहर का जतन हुनर पर है
रुक खड़े हो जहां बिन दस्तकी
मन दर्पण अब किस डगर पर हैं॥
सोच के रखते कदम ताल में
बढ़ते न बहम पल पहर पर हैं॥
खबर यह अब मिरे सन्मुख हुई
मिलता कारवां इस नगर पर हैं॥
गर भनक लग जाती मुझे तनिक
न रहती गिला जो नजर पर है॥
दूर रहे भला कि परछाइयाँ
पल जुदा नहीं जो महर पर है॥
गौतम भुगते ये किसकी सजा
खता न पता दर्द अधर पर है॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी