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“कता”तुझे छोड़ न जाऊँ री सैयां न कर लफड़ा डोली में।

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“कता”तुझे छोड़ न जाऊँ री सैयां न कर लफड़ा डोली में। क्या रखा है इस झोली में जो नहीं तेरी ठिठोली में। आज के दिन तूँ रोक ले आँसू नैन छुपा ले नैनों से- दिल ही दिल की भाषा जाने क्या रखा है बोली में ॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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