छंदमुक्त काव्य...... “पथिक मैं पथिक” रुक पा रहा हूँ न चल पा रहा हूँ पथिक मैं पथिक हूँ रगड़ खा रहा हूँ मंजिल वहाँ है सपने जहाँ हैं राहों का क्या वो कहाँ की कहाँ हैं उसी राह पर पग बढ़ा जा रहा हूँ पथिक मैं पथिक हूँ रगड़ खा रहा हूँ......... कंधे पर मेरे बोझि