वो बेसुध सी पड़ी हुई शायद निहार रही है,
यूं लगा जैसे मानो सहमी हुई कराह रही है.
कईं बार रोका है कि शायद ये एक धोखा है,
जाने क्यों नजर उधर ही देखना चाह रही है.
लगा ऐसा कि ये कुछ नया बताना चाहती है,
आंखें खोलना चाहे, जहां भी परवाह रही है.
बिन कहे बहुत समझाने की इसमें ताकत है,
क्या है सच और क्या कभी अफवाह रही है.
कल,आज और कल की ये अजब तस्वीर है,
कितने किस्सों की ये अखवार गवाह रही है.