गजल जैसा ही कुछ प्रस्तुत है गजल तो नहीं कह सकता बस एक नजर करे, 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
तुम बिन रहने की आदत डाल रहा हूँ,
मै एक पत्थर मे चाहत डाल रहा हूँ,
इस नामुराद दिल मे तुम्हारे झूठे,
पैगाम की झूठी राहत डाल रहा हूँ,
किसी को देख कर बहुत मचलता है ये दिल,
इसमे थोडी सी शराफत डाल रहा हूँ,
हर रोज सपने मे हदे टूटती है,
मै तो सपनो मे सरहद डाल रहा हूँ,
सुना है तुम जख्म सहने के आदि हो,
लो हेम मै भी आहत डाल रहा हूँ,
हेमराजसिंह राजपूत