गजल
तुम्हारे शहर मे ये तमाशा क्यों है,
यहाँ हर शक्स इतना प्यासा क्यो है,
लूट जाती है एक अवला कि आवरु
जब उसे इंसाफ नही तो दिलाशा क्यो है,
देखा है,मेने तुम्हारे शहर के लोगो कि आँखों
मे इतनी भोग-विलासा क्यों हैं,
जो मोक्ष के दौर मे है,ओर जो मोक्ष के द्वारे है,
उनमे ये अभिलाषा क्यो है,
कुछ हद पार कर गए, कुछ करने को है फिर
भी उनमे इतनी निराशा क्यो है,
जैसे-तैसे बचते बचाते पहुँच गए, मंजिलो पर
अपनी न जाने फिर भी ये हताशा क्यों है,
(हेमराजसिंह )
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