:-माँ-: "माँ" तुम्हारा मुझ पर बडा एहसान हुआ , तब जाकर कही मै इंसान हुआ, "माँ" अगर मे अपनी देह की चमडी से तुम्हारे चरणों कि पादुका बना दूँ तो तुम्हारे ऋण से उऋण नही नही हो पाऊँगा, मै चाहे कितना भी बडा दानी क्यों न बन जाऊँ लेकिन कुंति पुत्र कर्ण नही हो पाऊँगा, "माँ" मेरी सारी शौहरत रोडी है माँ शब्द के आगे, "माँ" मेरी सारी धन दौलत कौडी है माँ शब्द के मूल्य के आगे, "माँ" जब तुम मेरे नजदीक होती हो तो खुद को परेशानियों से मुक्त पाता हूँ, "माँ" जब तुम मुझसे दूर होती हो तो मे खुद को तकलीफ़ो मे युक्त पाता हूँ, "माँ" मे आज भले ही जमाने के संग-संग तेजी से चल रहा हूँ लेकिन तुम्हारी ऊँगली पकड कर चलना सीखा है, क्रोध के आवेश मे शब्दों से लगे घावो पर तुमसे ही तो औषधि मलना सीखा है, "माँ" आज क्षृष्टि के समस्त
व्यंजन मेरे लिए अस्वादिष्ट है उन चटनी रोटी के आगे जो तुम पाठशाला जाते वक्त मेरे वस्ते मे रखती थी, जब तक लौटता न था पाठशाला से घर तब तक तुम मेरा दरवाजे पर खडी होकर रास्ता तकती थी, "माँ" ओर ये संसार के सारे पेय पदार्थ मेरे लिए बिष है तुम्हारे स्थन के अमृत पान के समक्ष, जब मुझसे कोई ऋटि हो जाती थी तब घर भर मेरा विपक्ष करता एक तुम ही थी माँ जो करती थी मेरा पक्ष, "माँ" इस आधुनिक युग के आधुनिक उपकरण पंखा, कूलर, ए.सी., मुझे वो शीतलता प्रदान नही कर सकती जब तुम मुझे अपनी गोद मे लेकर साडी के पल्लू से हवा किया करती थी, ओर ये आज दुनिया कि सारी औषधियां वेकार है तुम्हारी उस औषधि के मुकाबले जब तुम बुरी नजर से बचाने के लिए मुझको काजल के टीके कि दवा किया करती थी,