कविता-माँ लिखती है खत मे,
माँ लिखती है, खत मे,
कि बेठा दरार आ गई है छत मे,
तेरे जाने से खुशियां चली गई है
आंगन से,
अब तो लौट कर आजा किसी
बहाने से,
रक्षाबंधन पर तेरी बहन थाली
सजाए आस लगाए बैठी रहती है,
मन ही मन तुझे राखी बांधने कि
प्यास लगाए बैठी रहती है,
तेरे पिता अंदर ही अंदर टूट
चुके है,
अब उनकी आँखों से आंसू छूट
चुके है,
तुझको पता नहीं है तेरे पिता ने
अब छडी पकड ली है,
तेरे आने के इंतजार मे उन्होंने
अब घडी पकड ली है,
तेरा भाई तुझ बिन अकेला उदास
रहता है,
लगता जैसे गम कि दुनिया के पास
रहता है,
तेरी दादी की बुढी आँखें सुबहा-
शाम रास्ता तेरा निहारती रहती है,
सोते हुए अक्सर ख्वाबो मे बस
तुझे ही पुकारती रहती है,
गांव के चौपाल मे शाम के वक्त तेरे
दोस्त तेरी ही जिक्र करते है,
न जाने कहाँ होगा कैसा होगा एक-
दुसरे से कर बात तेरी ही फिक्र करते है,
आते-जाते गांव के बडे बुजुर्ग तेरी
खबर-बतर पूंछते रहते है,
जो ज्ञानी विध्दवान है वो तेरे जाने
वाले दिन का नक्षत्र पूंछते रहते है,
ऐ-मेरे बेटे जिंदगी के कुछ दिन
ओर बचे है तेरे साथ रहकर काटना
चाहते है,
बहुत रह लिए तुझ बिन अकेले-अकेले
अब साथ रहकर खुशियां वांटना
चाहते है,
खत मिलते ही तू तुरंत निकल आना,
बहन कि राखी को,भाई के अकेले
पन को,पिता की छडी को,दोस्तो कि
फिक्र को,दादी की पुकाइ को कुछ तो
जबाब दे जाना,
मेरा क्या है मै तो हर रोज जीती मरती
हूँ,
जिस दिन से तू गया है उस दिन से
आजतक तेरे वियोग मे मरती रहती
हूँ,
तू लौटकर आए तो हमको जीने कि
चाहा मिल जाए,
तुझ बिन जो भटक चुके है रास्ते वो
राह मिल जाए,
अब मे तुझको क्या-क्या बताऊ सब
कुछ तो तू जानता है,
घर कि हालत तुझसे छुपि नही सब
कुछ तो तू पहचानता है,
मेरा आर्शीवाद सदैव तेरे साथ रहे दिन
दौगुना रात चौकनी हो,
मेरे हिस्से कि खशियां तेरी हो ओर तेरे
हिस्से कि परेशानी चाहे मुझे भोगनी हो,
(हेमराजसिंह राजपूत)