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कविता-माँ

1 अप्रैल 2017

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featured imageकविता-माँ लिखती है खत मे, माँ लिखती है, खत मे, कि बेठा दरार आ गई है छत मे, तेरे जाने से खुशियां चली गई है आंगन से, अब तो लौट कर आजा किसी बहाने से, रक्षाबंधन पर तेरी बहन थाली सजाए आस लगाए बैठी रहती है, मन ही मन तुझे राखी बांधने कि प्यास लगाए बैठी रहती है, तेरे पिता अंदर ही अंदर टूट चुके है, अब उनकी आँखों से आंसू छूट चुके है, तुझको पता नहीं है तेरे पिता ने अब छडी पकड ली है, तेरे आने के इंतजार मे उन्होंने अब घडी पकड ली है, तेरा भाई तुझ बिन अकेला उदास रहता है, लगता जैसे गम कि दुनिया के पास रहता है, तेरी दादी की बुढी आँखें सुबहा- शाम रास्ता तेरा निहारती रहती है, सोते हुए अक्सर ख्वाबो मे बस तुझे ही पुकारती रहती है, गांव के चौपाल मे शाम के वक्त तेरे दोस्त तेरी ही जिक्र करते है, न जाने कहाँ होगा कैसा होगा एक- दुसरे से कर बात तेरी ही फिक्र करते है, आते-जाते गांव के बडे बुजुर्ग तेरी खबर-बतर पूंछते रहते है, जो ज्ञानी विध्दवान है वो तेरे जाने वाले दिन का नक्षत्र पूंछते रहते है, ऐ-मेरे बेटे जिंदगी के कुछ दिन ओर बचे है तेरे साथ रहकर काटना चाहते है, बहुत रह लिए तुझ बिन अकेले-अकेले अब साथ रहकर खुशियां वांटना चाहते है, खत मिलते ही तू तुरंत निकल आना, बहन कि राखी को,भाई के अकेले पन को,पिता की छडी को,दोस्तो कि फिक्र को,दादी की पुकाइ को कुछ तो जबाब दे जाना, मेरा क्या है मै तो हर रोज जीती मरती हूँ, जिस दिन से तू गया है उस दिन से आजतक तेरे वियोग मे मरती रहती हूँ, तू लौटकर आए तो हमको जीने कि चाहा मिल जाए, तुझ बिन जो भटक चुके है रास्ते वो राह मिल जाए, अब मे तुझको क्या-क्या बताऊ सब कुछ तो तू जानता है, घर कि हालत तुझसे छुपि नही सब कुछ तो तू पहचानता है, मेरा आर्शीवाद सदैव तेरे साथ रहे दिन दौगुना रात चौकनी हो, मेरे हिस्से कि खशियां तेरी हो ओर तेरे हिस्से कि परेशानी चाहे मुझे भोगनी हो, (हेमराजसिंह राजपूत)

हेमराजसिंह राजपूत की अन्य किताबें

नृपेंद्र कुमार शर्मा

नृपेंद्र कुमार शर्मा

बहुत अच्छी रचना

10 जून 2017

रेणु

रेणु

प्रिय हेम -- आपकी रचना बहुत ही सुन्दर और हृदयस्पर्शी है -- ये कविता किसी भी निर्लेप हृदय को पिघलाने के लिए काफी है -- माँ के हृदय की पीड़ा को आपने बखूबी बयान किया -- काश - कि हर बेटा इसका मर्म समझ पाता !! माँ सरस्वती और माँ भगवती आप पर अपनी कृपा बनाये रखें -- आपको हार्दिक शुभकामना ---------------

1 अप्रैल 2017

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वियोग क्षृंगार कविता

19 मार्च 2017
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वियोग क्षृंगार कविताए

19 मार्च 2017
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कविता-तुम कुछ भी कह लो तुमको मुझसे वो प्यार नही है,

19 मार्च 2017
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मुक्तक

19 मार्च 2017
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19 मार्च 2017
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मुक्तक

20 मार्च 2017
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तुम्हारी पुरानी यादों को लिए बैठा हूँ, तुम्हारे आने के सपने सँजोए बैठा हूँ, आकर देख लो बीच भँवर मे छोड़ कर गए थे मै किनारा लिए बैठा हूँ ......@हेमराज सिंह.....

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मुक्तक

20 मार्च 2017
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मै गलती से एक गलती कर बेठा, मै मोहब्बत थोडी जल्दि कर बेठा, बडे बुजुर्ग आज भी मुझे बच्चा ही कहते है मै ये नादानी थोडि जल्दि कर बेठा, (हेमराजसिंह राजपूत )

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तुम कुछ भी कहलो तुमको मुझसे वो प्यार नही है,

20 मार्च 2017
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~ कविता ~ तुम कुछ भी कह लो पर तुमको मुझसे वो प्यार नही हैं, आँखों मे वो चमक बार नहीं है वो खुशियों से भरा घर बार नही है, तुम्हारी बातो मे न अब वो चिंता रही, जब तुम कहती थी कि तुम बिन न जाने मे कैसै जिंदा रही, जब तुम पल-पल को कल-कल मे जीती थी, गम

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प्रेम गीत

20 मार्च 2017
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प्रेम गीत मेने गीतो मे तुम्हें गुनगुनाया हैं, मेने अरमानो सा तुम्हें सजाया है, तुम हो मेरे आँखों की रोशनी, तुम ही हो मेरे सपनो की निशानी, मेने तुम्हारे लिए प्रेम राग गाया हैं, मैंने गीतों में तुम्हें गुनगुनाया हैं, तुम मेरी कलम कि लेख नी हो, तुम मेरे सपनों कि सजनी

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माँ

22 मार्च 2017
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:-माँ-: "माँ" तुम्हारा मुझ पर बडा एहसान हुआ , तब जाकर कही मै इंसान हुआ, "माँ" अगर मे अपनी देह की चमडी से तुम्हारे चरणों कि पादुका बना दूँ तो तुम्हारे ऋण से उऋण नही नही हो पाऊँगा, मै चाहे कितना भी बडा दानी क्यों न बन जाऊँ लेकिन कुंति प

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तुम मिली तो लगा

27 मार्च 2017
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कविता.ओ -तुम मिली तो लगा तुम मिली तो लगा कि मुझे मेरी तकदीर मिल गई, जन्मो से गुम थी मेरे हाथों कि वो लकिर मिल गई,

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गजल-चाहत के सब फंसाने झूठे थे,

28 मार्च 2017
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गजल-चाहत के सब फंसाने झूठे थे,चाहत के सब फंसाने झूठे थे,जब उनके हाथों से मेरे हाथ छूटे थे,मे चाहकर भी उनको थामकरसाथ चल न सका मेरी तकदीरके सब सितारे मुझसे रूठे थे,उनको एक अजीब सा नशारहता था तीन शब्दों कि दौलतका इसलिए सब रिश्ते टूटे थे,कहते है कि आईने सब कुछसाफ दिखाते है जिसमें हमदोनो के चेहरे थे

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कविता-माँ

1 अप्रैल 2017
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कविता-माँ लिखती है खत मे,माँ लिखती है, खत मे,कि बेठा दरार आ गई है छत मे,तेरे जाने से खुशियां चली गई हैआंगन से,अब तो लौट कर आजा किसीबहाने से,रक्षाबंधन पर तेरी बहन थालीसजाए आस लगाए बैठी रहती है,मन ही मन तुझे राखी बांधने किप्यास लगाए बैठी रहती है,तेरे पिता अंदर ही अंदर टूट चुके है,अब उनकी आँखों से आंसू

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गजल-प्रेम कि राहे

4 अप्रैल 2017
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प्रेम कि राहे साफ होती जा रही है, हमारी सब गलतियां माफ होती जा रही है, ये नजरों का धोका है,या धोका नजरों को हैयहाँ मोहब्बते अपने आप होती जा रही है, जो हमसे कभी खफा-खफा रहते थे आज उनकी महोब्बते बे-हिसाब होती जा रही है, मेरी पतं

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गजल

14 अप्रैल 2017
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गजल-शब्दों को बातों मे रहने दे तो अच्छा है,शब्दों को बातों मे रहने दे तो अच्छा है,चाँद को रातों मे रहने दे तो अच्छा है,बहुत ही धोखे बाज है ये दुनिया तेरेहाथों को मेरे हाथों मे रहने दे तो अच्छा है,तेरे अपनो के रिश्तों से अलग मेरे दिलका रिश्ता है इसे रिश्ते नातो मे रहने देतो अच्छा है,तेरा प्यार बाँटने

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मुक्तक

20 अप्रैल 2017
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आज फिर हमने मन कि मानी,आँखों ने भी फिर कि बेईमानी,लोग बातो को दिल पर लग लेतेहै हमने तो बातो पर दिल लगाकरमानी, (हेमराजसिंह राजपूत)

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मुक्तक

21 अप्रैल 2017
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हर रोज दिल शायराना नही होता,हर किसी से अपना याराना नहीं होता,हम किसी-किसी को पसंद आते हैहर किसी से दिल का नजराना नहीं होता, (हेमराजसिंह राजपूत)

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गजल

2 मई 2017
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मैं जब तक सफर मे रहा,तब तक सब कि खबर मे रहा,और जब मै पा गया मुकाम-ए-मंजिल तो हर एक के जिक्र मे रहा,मैं कैसे वया करु अपना दर्द पर अपनोसे बिछड कर बडा हिज्र मे रहा,कुछ मजबूरीया थी मेरी जो मै तुमकोऐसे हालातों मे छोडकर गया पर सच कहू मे बडा फिक्र मे रहा,कई मेरे अपने मुझे दिलासे पर दिलासेदेते गए मै भी बहुत

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मुक्तक

9 जून 2017
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वो सुलगती आग को भी हवा देता था,हर गुनाह मे भी वो गवाह देता था,उसमे ओर मुझमें बस फर्क था इतनावो दर्द कि दवां देता था मै दर्द को दवा देता था, (हेमराजसिंह राजपूत)www Hemrajsingh rajput love sad poems com

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मुक्तक

9 जून 2017
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वो हमदर्दी तो करता है मगर प्यार नही करता,कोई मजबूरी होगी तब तो आँखे चार नही करता,वो जब भी मिलता है मेरी फिक्र कि बात करता हैमुझे अफसोस है कि वो जिक्र ए प्यार नही करता,(हेमराजसिंह राजपूत)

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गजल

24 जून 2017
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गजलतुम्हारे शहर मे ये तमाशा क्यों है,यहाँ हर शक्स इतना प्यासा क्यो है,लूट जाती है एक अवला कि आवरु जब उसे इंसाफ नही तो दिलाशा क्यो है,देखा है,मेने तुम्हारे शहर के लोगो कि आँखों मे इतनी भोग-विलासा क्यों हैं,जो मोक्ष के दौर मे है,ओर जो मोक्ष के द्वारे है,उनमे ये अभिलाषा क्यो है,कुछ हद पार कर गए, कुछ कर

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गजल

1 जुलाई 2017
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🙏🏻 💐गजल💐 🙏🏻तुम्हारी बातो से बगावत की बूँ आती है,वही तुम्हारे शहर से हू-व-हू आती है,कंक्रीट से बने शहरो मे तो नही आती लेकिन मिट्टी से बने गांवों मे वो सोंधी खुशबू आती है,गर किसी कि पाक नजरो से गिर जाए तो दोवारा लौटकर वो इज्जत-ए-आवरु नही आती है,मिलने का दिलाशा देकर उसे विछुडे बर्षो हो गए ले

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मुक्तक

11 जुलाई 2017
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सोशल साईट पर ऐसी झूठी हमदर्दी न जताईए, निर्दोषो कि जान गई है कोई ठोस कदम उठाईए, बात आप बदला लेने कि करते होपहले जरा सैनिको कि बंदूको पर लगे अंकुशो को हटाईए, ( हेमराजसिंह राजपूत) अमरनाथ यात्रा मे मारे गए भक्तो को नमन पूर्वक श्राध्दांजली 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻💐💐💐💐

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मुक्तक

16 जुलाई 2017
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अपनो को छोड गैरो मे सौगाते बांटी जा रही है,इस गम से छाती हमारी बैठी जा रही है,जब मालूम हुई अपनो के हिस्से कि बात तो पता चला कि अपनो के हिस्से मे नफरते बांटी जा रही है, (हेमराजसिंह राजपूत)

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गजल

17 जुलाई 2017
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🙏🏻 गुदगुदाती गजल🙏🏻अब हमको भी मोहब्बत का इजहार होना चाहिए,तीर जिगर के उस पार होना चाहिए,बहुत रह लिए किसी के बिन अकेले-अकेले अब अपना भी घर संसार होना चाहिए,हर कोई देख पढ लेता है चेहरा हमारा हमको भी अब अखबार होना चाहिए,कि, बस एक नजर मे दिल चुरा लेते है हमको भी ऐसो से अब खबरदार होना चाहिए,सुना है, क

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मुक्तक

30 जुलाई 2017
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तुमसे मिलकर कोई, अब ख्वाइश न रही,इस जमाने से कोई, अब आजमाइस न रही,इस कदर प्यार तुमने किया मुझसे उम्र भर शिकायत की कोई अब गुंजाइश न रही, हेमराज राजपूत भोपाल

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मुक्तक

6 अगस्त 2017
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तेरे मेरे बीच मे फिर से जमाना आ गयाजो कभी गाया था हमने,वो तराना आ गयाकाटकर उँगली को अपनी, जो लहू से था लिखाआज मेरे हाथ मे वो खत पुराना आ गया।

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गजल

11 अगस्त 2017
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बस इतना सा ही ख्वाब है मेरा,ढाई अक्षर का जवाब हो तेरा,ना तू ठग सके ना मै ठग सकाऊबस इस तरह से हिसाब हो मेरा,कठिन राहो पर सफर कर रहा हूँमेरी जीत पर खिताब हो तेरा,तुझसे बस इतनी गुजारिश है,कि तेरे हाथों मे गुलाब हो मेरा,सारी दुनिया खिलाफ हो जाए बस तेरा प्यार ना खिलाफ हो मेरा,हेमराजसि

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मुक्तक

24 अगस्त 2017
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में सबकुछ हार बेठा हूँ, तुम्हारी इक बनावट पे,सभी श्रृंगार फीके हैं तुम्हारी एक सजावट पे,मेरे घर की हो तुम शोभा,मेरे आँगन की तुलसीहो सभी त्योहार न्योछावर,तुम्हरी मुस्कुराहट पे, हेमराजसिंह राजपूत

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गजल

17 सितम्बर 2017
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गजल जैसा ही कुछ प्रस्तुत है गजल तो नहीं कह सकता बस एक नजर करे, 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻तुम बिन रहने की आदत डाल रहा हूँ,मै एक पत्थर मे चाहत डाल रहा हूँ,इस नामुराद दिल मे तुम्हारे झूठे,पैगाम की झूठी राहत डाल रहा हूँ,किसी को देख कर बहुत मचलता है ये दिल,इसमे थोडी सी शराफत डाल रहा हूँ,हर रोज सपने

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कविता

9 अक्टूबर 2017
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पुरानी डायरी से-2016आज कोई हमारी भी लम्बी उम्र कि दुआएं मांगेगा,हमारे घर जल्दी लौट आने कि सदाए मांगेगा,पल-पल उसका एक पहर सा गुजरेगा,मेरे बिन जाने केसे उसका दिन निकलेगा,वो आज नये-नये स्वप्न सजाएगी,मुझे ख्वावो मे बुलाकर ही करवा चौथ मनाएगी,जब मै गांव लौटूंगा तो वो थोडा बहुत गिला शिकवा जरूर जताएंगी,तुम्

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मुक्तक

13 अक्टूबर 2017
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1222, 1222, 1222, 1222,हमारी प्रीत मे हमने कभी भी भ्रम नहीं खाये ,जमाने से कभी भी जख्म हमने कम नहीं पाये,हमेशा हम तुझे आवाज देकर ही बुलाते थे,किसी दिन तुम नहीं आई किसी दिन हम नहीं आये,हेमराज

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मुक्तक

20 अक्टूबर 2017
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1222, 1222, 1222, 1222,न वो इनकार करती है न वो इकरार करती है,लगा कर टकटकी मुझ पे नजर से वार करती है,मुझे मालूम है की वो जमाने से झिझकती है,चुरा कर वो नजर अपनी मेरा दीदार करती है,हेमराज

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मुक्तक

31 दिसम्बर 2017
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रहे जो याद सदियों तक मै ऐसी रीत बन जाऊँ,तु मेरी हार बन जाये मै तेरी जीत बन जाऊँ,जमाना प्रेम ग्रंथों मे हमेशा हमको गाये गा,बनो तुम प्रेम की पाती तो मै एक गीत बन जाऊँ,हेमराज

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जरा ठहरो

18 फरवरी 2018
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जरा ठहरो अभी दिल की सनम कुछ बात बाकी है,हमारे ओर तुम्हारे मिलन की याद बाकी है,मिले थे हम कभी पहली दफा पहली कक्षाओं मेकिया वादा उसी वादे कि पहली रात बाकी है,Hemraj Singh Rajput

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