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हमराजसिंह राजपूत ग्राम माधोपुरा जिला गुना

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जरा ठहरो

18 फरवरी 2018
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जरा ठहरो अभी दिल की सनम कुछ बात बाकी है,हमारे ओर तुम्हारे मिलन की याद बाकी है,मिले थे हम कभी पहली दफा पहली कक्षाओं मेकिया वादा उसी वादे कि पहली रात बाकी है,Hemraj Singh Rajput

मुक्तक

31 दिसम्बर 2017
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रहे जो याद सदियों तक मै ऐसी रीत बन जाऊँ,तु मेरी हार बन जाये मै तेरी जीत बन जाऊँ,जमाना प्रेम ग्रंथों मे हमेशा हमको गाये गा,बनो तुम प्रेम की पाती तो मै एक गीत बन जाऊँ,हेमराज

मुक्तक

20 अक्टूबर 2017
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1222, 1222, 1222, 1222,न वो इनकार करती है न वो इकरार करती है,लगा कर टकटकी मुझ पे नजर से वार करती है,मुझे मालूम है की वो जमाने से झिझकती है,चुरा कर वो नजर अपनी मेरा दीदार करती है,हेमराज

मुक्तक

13 अक्टूबर 2017
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1222, 1222, 1222, 1222,हमारी प्रीत मे हमने कभी भी भ्रम नहीं खाये ,जमाने से कभी भी जख्म हमने कम नहीं पाये,हमेशा हम तुझे आवाज देकर ही बुलाते थे,किसी दिन तुम नहीं आई किसी दिन हम नहीं आये,हेमराज

कविता

9 अक्टूबर 2017
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पुरानी डायरी से-2016आज कोई हमारी भी लम्बी उम्र कि दुआएं मांगेगा,हमारे घर जल्दी लौट आने कि सदाए मांगेगा,पल-पल उसका एक पहर सा गुजरेगा,मेरे बिन जाने केसे उसका दिन निकलेगा,वो आज नये-नये स्वप्न सजाएगी,मुझे ख्वावो मे बुलाकर ही करवा चौथ मनाएगी,जब मै गांव लौटूंगा तो वो थोडा बहुत गिला शिकवा जरूर जताएंगी,तुम्

गजल

17 सितम्बर 2017
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गजल जैसा ही कुछ प्रस्तुत है गजल तो नहीं कह सकता बस एक नजर करे, 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻तुम बिन रहने की आदत डाल रहा हूँ,मै एक पत्थर मे चाहत डाल रहा हूँ,इस नामुराद दिल मे तुम्हारे झूठे,पैगाम की झूठी राहत डाल रहा हूँ,किसी को देख कर बहुत मचलता है ये दिल,इसमे थोडी सी शराफत डाल रहा हूँ,हर रोज सपने

मुक्तक

24 अगस्त 2017
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में सबकुछ हार बेठा हूँ, तुम्हारी इक बनावट पे,सभी श्रृंगार फीके हैं तुम्हारी एक सजावट पे,मेरे घर की हो तुम शोभा,मेरे आँगन की तुलसीहो सभी त्योहार न्योछावर,तुम्हरी मुस्कुराहट पे, हेमराजसिंह राजपूत

गजल

11 अगस्त 2017
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बस इतना सा ही ख्वाब है मेरा,ढाई अक्षर का जवाब हो तेरा,ना तू ठग सके ना मै ठग सकाऊबस इस तरह से हिसाब हो मेरा,कठिन राहो पर सफर कर रहा हूँमेरी जीत पर खिताब हो तेरा,तुझसे बस इतनी गुजारिश है,कि तेरे हाथों मे गुलाब हो मेरा,सारी दुनिया खिलाफ हो जाए बस तेरा प्यार ना खिलाफ हो मेरा,हेमराजसि

मुक्तक

6 अगस्त 2017
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तेरे मेरे बीच मे फिर से जमाना आ गयाजो कभी गाया था हमने,वो तराना आ गयाकाटकर उँगली को अपनी, जो लहू से था लिखाआज मेरे हाथ मे वो खत पुराना आ गया।

मुक्तक

30 जुलाई 2017
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तुमसे मिलकर कोई, अब ख्वाइश न रही,इस जमाने से कोई, अब आजमाइस न रही,इस कदर प्यार तुमने किया मुझसे उम्र भर शिकायत की कोई अब गुंजाइश न रही, हेमराज राजपूत भोपाल

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