हजारों-लाखों बूंदें नहीं भिगा पाईं मुझे, लेकिन उसके पलकों से गिरी एक बूंद ने पूरी तरह भिगा दिया था मुझे।
उस दिन वह बारिश में अकेली एक बैंच पर बैठी हुई थी। सब छतरी ओढ़े हुए इधर-उधर आ जा रहे थे, लेकिन शायद वह इकलौती लड़की थी जो उस बैंच पर बैठकर झील की गहराई में झांक रही थी।
वैसे तो मैं स्वभाव से बहुत ही शर्मीला हूँ। विशेषकर लड़कियों से बात करने में मेरी सिट्टी- पिट्टी गुम हो जाती है, लेकिन पता नहीं उस दिन कहाँ से मेरे भीतर हिम्मत आई। मैं उस लड़की के करीब गया और उससे यत्न करके बोला- "बहुत तेज बारिश हो रही है ना !" दरअसल मैं बोलना कुछ चाह रहा था और मेरे मुंह से निकला कुछ और।
मेरी आवाज सुनकर भी उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह बस झील को एकटक देखती रही। मैं फिर बोला- "कितनी सुंदर झील है ना !" वह फिर भी खामोश रही। ऐसा लग रहा था जैसे उस पर मेरी बात का कोई असर ही न पड़ रहा हो।
"तो ठीक है। जब तक आप मुझसे बोलोगे नहीं मैं भी यहीं बैठकर बारिश में भीगता रहूंगा।" मैंने सचमुच अपनी छतरी बंद की और उस लड़की के बगल में वहीं बैंच पर बैठ गया।
झील काफी गहरी प्रतीत हो रही थी।
"अच्छा, तो आपको आपके प्रेमी ने धोखा दिया होगा ! तभी आप इतनी दुखी हैं ?" मैंने मजाकिया लहजे में कहा।
उसकी देह में हरकत-सी हुई।
"क्या मैं आपको ऐसी- वैसी लड़की लग रही हूँ ?" वह मेरी ओर देखकर बोली।
"नहीं बिल्कुल नहीं !" मैंने तुरंत जवाब दिया।
"तो फिर आप ऐसा क्यों सोच रहे हैं ?" इतना कहकर वह भावुक हो उठी। मैंने देखा कि उसकी आंख से एक बूंद गिरकर बारिश की बूदों में समा गई।
उसकी इस बूंद ने मुझे भी भीतर तक भिगो दिया। मैं सोचने लगा, आखिर क्या दुख हो सकता है जींस, शर्ट पहनी हुई इस सोलह- सत्रह साल की खूबसूरत लड़की का ! भीतर से कोई युक्तिसंगत जवाब न मिलने पर मैंने उससे कहा- "आपको पता है, हमारे बड़े- बुजुर्गों ने कहा है कि अगर हम किसी से अपना दुख-दर्द साझा करते हैं तो हमारा मन काफी हल्का हो जाता है और हमें आराम महसूस होता है।"
"रहने दो ! मुझे नहीं मतलब किसी ने क्या कहा है ! मुझे अपने जीवन से कोई मोह नहीं। मैं किसी योग्य नहीं हूँ। रात होने दो। मैं इसी झील में कूदकर अपने प्राण त्याग दूंगी।" उसने कहा।
झील की गहराई से कुछ मछलियाँ ऊपर आकर उछलकूद करने लगीं थीं। कुछ नौकाएँ झील में इधर- से- उधर टहल रही थीं।
उसके इरादों ने मुझे भीतर तक हिलाकर रख दिया था। इसका मतलब है कि यह लड़की आत्महत्या करने के इरादे से वहाँ पर बैठी हुई थी !
"आप चाहे जिस भी कारण से दुखी हों। आपका दुख चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो। अगर आप आत्महत्या के विचार से यहाँ बैठी हैं, तो आप बहुत गलत कर रही हैं।"
"क्यों ?" उसने तुरंत सवाल किया।
"क्योंकि दुनिया भर में जितने भी ज्ञानी, संत, महापुरुष हुए हैं सबने यही कहा है कि मनुष्य का जीवन दुर्लभ है। हमें इसे यूँ ही व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए और ना ही आत्महत्या जैसा घृणित कर्म करके पाप का भागी बनना चाहिए।" मैंने दार्शनिक होकर कहा।
"अच्छा ! तो आप ही बताओ मुझे क्या करना चाहिए ? आपको पता है मैंने इस बार कितनी मेहनत की थी, फिर भी मेरे नब्बे परसेंट नंबर ही आये। मैं क्या करूँ बताओ !" उसने अपने दुखी होने का राज खोलकर रख दिया।
"नब्बे परसेंट नंबर और फिर भी तुम दुखी हो ?" मैं चौंका। खैर, इतना तो मैं समझ चुका था कि उसका कल ही बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट आया है।
"हाँ, और नहीं तो क्या ! मेरी एक सहेली के बयानबे परसेंट नंबर हैं, दूसरी के पिचानबे। मेरे नब्बे ही आये ! मुझे हंड्रेड परसेंट नंबर लाकर टापर बनना था।" उसने कहा।
"पता है मुझे तुम्हारी बात पर यकीन ही नहीं हो रहा। कोई नब्बे परसेंट नंबर लाने के बाद कैसे दुखी हो सकता है ?"
"तो क्या मैं तुमसे झूठ बोल रही हूँ ? नहीं, मेरे कहने का मतलब था आपसे..?"
"कोई बात नहीं। मुझसे आप कहने की जरूरत नहीं है। मुझे अपना दोस्त समझो। वैसे भी मैं तुमसे उमर में अधिक बड़ा नहीं हूँ। बस चार-पांच साल का ही तो अंतर है।"
"ठीक है, लेकिन मैं झूठ नहीं बोल रही।"
"हाँ मुझे पता है..पगली !"
"हैं ! तुमने मुझे पगली कहा ?"
"हाँ, और नहीं तो क्या ! इतने सारे नंबर लाने के बाद भी जो लड़की दुखी हो उसे पगली नहीं कहूँ तो और क्या कहूँ ?"
"चुप रहो। तुमको नहीं पता कि दसवीं में भी मेरे पिचासी परसेंट नंबर ही आये। मैंने सोचा कि बारहवीं मैं जरूर टाप करूंगी, लेकिन इस बार भी... नहीं, मुझे नहीं जीना। तुम जाओ यहाँ से। क्यों मुझ पागल के साथ यहाँ बारिश में भीग रहे हो ?"
"जब पूरा भीग चुका तब कह रही हो जाने को ! अच्छा रहने दो। सच कहूँ तो मैं तुम्हारी जगह होता तो पूरे शहर में पार्टी करवाता। मेरे तो दसवीं में बयालीस और बारहवीं में पचास परसेंट नंबर ही आये। फिर भी मैं कभी निराश नहीं हुआ।" मैंने अपनी बात बताई।
"तुम्हारी बात अलग है !"
"क्यों, क्या मैं कोई दूसरे ग्रह का प्राणी हूँ ?" मैंने मजाक किया।
"हाँ, मुझे तो एलियन जैसे ही लग रहे हो।" उसने मुंह बनाया।
मुझे भीतर से प्रसन्नता हुई। चलो उसने कम-से-कम मेरे मजाकिया प्रश्न का मजाकिया उत्तर तो दिया। मुझे विश्वास हो गया था कि मैं अब उसके उदास चेहरे पर मुस्कुराहट लाने में निश्चित ही कामयाब हो पाऊंगा।
"बोर्ड परीक्षा में कई स्टूडेंट फेल हो जाते हैं। इसका यह मतलब नहीं होता कि वे अपने जीवन में कभी पास होंगे ही नहीं। महात्मा गांधी, एडीसन, अब्राहम लिंकन आदि तमाम ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपनी स्टूडेंट लाइफ में कोई विशेष प्रदर्शन नहीं किया, लेकिन अपने जुनून व श्रेष्ठ जीवन दर्शन के कारण दुनिया भर में अपनी योग्यता का लोहा मनवाया।" मैंने पुनः मुख्य बिंदु पर आकर उसे प्रेरित करने की कोशिश की।
"हाँ, आप सही कर रहे हो। मुझे मेहनत करनी चाहिए। यहाँ टापर नहीं बनी तो क्या हुआ। आने वाली परीक्षाओं में बनूंगी।" उसकी पलकों में पुनः आंसू थे। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह मेरी बात को समझ चुकी है।
"हाँ, यह हुई ना बात। अब से भविष्य में कभी निराश मत होना। कभी कोई परेशानी हो तो मुझे बताना। मैं हूँ ना तुम्हारा दोस्त..मुझे पूरा विश्वास है तुम भविष्य में एक ऊंचा मुकाम हासिल करोगी। आओ अब चलें.. तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूं।" मैंने छतरी पकड़कर उठते हुए कहा।
वह भी खड़ी हुई। मैंने छतरी खोली और हम दोनों साथ में चल दिए। हालांकि हम पूरे भीग चुके थे, बाहर से भीतर तक, लेकिन फिर भी एक छतरी के नीचे होने का एहसास उसे भी सुकून पहुंचा रहा था और मुझे भी।
उसे उसकी मंजिल पर छोड़कर मैंने कहा- "तुम चाहो तो हम कल काफी पार्टी कर सकते हैं। तुम्हारे बेहतर अंकों से पास होने की खुशी में।" उसने कहा- पागल! क्या मैं तुमको कोई ऐसी-वैसी लड़की लगती हूँ ?" यह कहकर वह मुस्कुराई। और कुछ ही पलों में उसकी मुस्कुराहट और मेरी मुस्कुराहट दोनों मिलकर एक हो गईं।